अतुल्य लोकतंत्र अलीगढ़: डॉ बी आर अम्बेडकर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ आगरा के पूर्व अध्यक्ष Dr. Rakashpal डॉ. रक्षपाल सिंह ने हरिद्वार एवं रायपुर में बीते कुछ दिनों में सम्पन्न हुई धर्म संसदों में कतिपय संतों के विवादित बयानों के संदर्भ में कहा है
कि सामान्य लोगों की तुलना में संत समाज के विद्वानों से देश/समाज काफी अधिक अपेक्षा रखता है कि वे अपने
- उदबोधन,
- व्यवहार,
- कार्यशैली एवं सोच में सनातन धर्म में उल्लिखित संत गरिमा को
सदैव बनाये रखें।
धर्म की परिधि में अपनी विचारधारा के विरोधी के प्रति भी विद्वेष / शत्रु भावना के लिए कोई स्थान नहीं है।
ऐसी स्थिति में विरोधी विचार धारा के राष्ट्रपिता गांधीजी की ही नहीं बल्कि किसी भी
- निर्दोष व्यक्ति की हत्या को जायज बताना धर्म विरुद्ध है
- संतों के ऐसे आयोजन को धर्म संसद का नाम देना धर्म के अर्थ का अनर्थ करना ही है।
डॉ. रक्षपाल सिंह ने कहा है कि धर्म शब्द किसी
- पंथ
- मज़हब
- मत
- रिलीजन
का पर्याय नहीं है
और इसकी परिभाषा केवल 10 हजार वर्ष से अधिक समय पूर्व लिखी मनुस्मृति के श्लोक ” धृति क्षमा दमोअस्तेयम शौचम इन्द्रियविनिग्रह, धीर विद्या सत्यमक्रोधो धर्म लक्षणम।
Dr. Rakashpal उल्लिखित है कि
- धैर्य
- क्षमा
- वासनाओं पर नियंत्रण
- वाह्य व ह्रदय की पवित्रता
- बुद्धिमत्ता
- विद्या
- सत्याचरण
- क्रोध न करना
आदि धर्म के लक्षण हैं अर्थात यदि मानव उक्त 10 लक्षणों पर अमल करता है तो वही मानव/संत धार्मिक कहा जा सकता है अथवा नहीं । संतों/ मानवों का कर्मकांड/ पूजापाठ में मात्र आस्था होना धर्म के लिये नाकाफी है। Dr. Rakashpal डॉ० सिंह ने सुझाव दिया है तथाकथित संतों को धर्म का मर्म जानने के बाद ही इस माह जनवरी 22 में अलीगढ़ में धर्म संसद का आयोजन करना चाहिए। ( लेखक डॉ. रक्षपाल सिंह प्रख्यात शिक्षाविद एवं धर्म समाज कालेज, अलीगढ़ के पूर्व विभागाध्यक्ष है )