आज देश में कोरोना महामारी के चलते हालात काफी चिंताजनक हैं। देश भर में 4 हजार मामले से उपर हो गए एवं 109 लोगों की मृत्यु हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की। ऐसी ही एक बैठक उन्होंने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू से पहले की थी। भले ही इन दोनों बैठकों के बीच सिर्फ 12 दिन का फासला है, पर कोरोना वायरस का संक्रमण जिस तेजी से फैल रहा है, यह अपने आप में चिंताजनक बात है। इस अंतराल में ऐसी बहुत सी चीजें हो गई हैं, जो बताती हैं कि संकट के इस समय में केंद्र व राज्यों के बीच लगातार समन्वय बहुत जरूरी है।
पहली घटना वह थी, जब पूर्ण लॉकडाउन लागू होने के बाद देश भर के प्रवासी मजदूरों ने अपने गांवों की ओर पलायन शुरू कर दिया था। यातायात पूरी तरह बंद था, पर उनमें से न जाने कितने पैदल ही चल पडे़ थे। उन्हें सैकड़ों मील लंबे फासले तय करने थे और इस बीच उनकी भूख-प्यास बुझाने के इंतजाम बहुत कम थे। उनका सड़कों पर होना लॉकडाउन के मकसद और उससे बांधी गई उम्मीद को ही ताक पर रख रहा था। ज्यादा बड़ा खतरा यह था कि वे संक्रमण के शिकार हो सकते हैं और अपने जिले या गांव पहुंचते-पहुंचते उसके वाहक भी बन सकते हैं। यह डर सबके मन में था कि उनमें से एकाध भी संक्रमण गांव तक ले गया तो? ऐन वक्त पर केंद्र सरकार ने राज्यों को विश्वास में लेकर हस्तक्षेप किया और स्थिति को बिगड़ने से बचाया। यह आदेश दिया गया कि जो जहां पर है, वहीं रहेगा और वहीं पर उसके खाने-रहने का इंतजाम किया जाएगा। यदि केंद्र और राज्यों के बीच पहले ही अच्छा समन्वय हुआ होता, तो शायद इस तरह की नौबत ही नहीं आती। हरियाणा सरकार ने राहत के काम में लेटलतीफी की जो दुखद है।
पिछले तीन दिनों में जो हुआ, उससे केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर समन्वय की जरूरत और बढ़ गई है। दिल्ली में तबलीगी जमात के मरकज में भाग लेने विदेशियों के अलावा देश भर से लोग आए थे। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोगों को कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ। ये लोग अपने साथ संक्रमण लेकर अपने-अपने प्रदेश में चले गए, और बढ़ते केस देश के लिए चिंताजनक स्थिति दर्शा रहे हैं। अब इन सब लोगों की फेहरिस्त तैयार करना, फिर उन सबको खोजना और उन्हें क्वारंटीन में डालना बहुत बड़ी चुनौती है। इनमें से कई लोगों का पता तो अब तक नहीं चल सका है और पिछले चार दिनों में ही यह खतरा बहुत बड़ा हो चुका है। ऐसे मामलों में केंद्र और राज्यों का अच्छा तालमेल ही हालात को अब ज्यादा बिगड़ने से रोक सकता है।
अभी तक देश में केंद्र और राज्यों की राजनीति चलती आई है, प्रधानमंत्री की मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में राजनीति पर विराम लगने की उम्मीद हुई और महामारी के खिलाफ एकजुट लड़ाई की जरूरत को सभी ने समझा भी है, तथा उसे मात देने की सबसे जरूरी शर्त भी थी। हालांकि सिर्फ प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों की बैठक से सारा समन्वय हो जाएगा, ऐसी भी उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। इसे पूरी तरह जमीन पर उतारने के लिए विभिन्न मंत्रालयों और नौकरशाही के स्तर पर लगातार बडे़ प्रयासों की जरूरत पड़ेगी। लेकिन अब जब राजनीतिक अवरोध नहीं हैं, तो इसकी उम्मीद भी बढ़ जाती हैै। संक्रमण कोई सीमा नहीं जानता, न देशों की, न प्रदेशों की। यह लड़ाई पूरे मानव समुदाय को मिलकर लड़नी है। फिलहाल बड़ी जरूरत यह है कि हम अपने देश के स्तर पर तो मिलकर इसका मुकाबला करें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजिक चिंतक हैं)