साबिर परवेज़
कहते हैं राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता है – न ही दोस्ती और न ही दुश्मनी। साथ ही राजनीति दिन ब दिन काफ़ी कड़वी और हिंसक होती जा रही है। कुछ समय पूर्व पश्चिम बंगाल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के काफिले पर हमला हुआ था और अब दो दिन पूर्व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हिंसक हमला हुआ जिससे वो काफ़ी घायल हुईं हैं और अस्पताल में इलाजरत हैं। इन सब हिंसक घटनाओं से स्पष्ट होता है कि राजनीति में कुछ सभ्य नहीं रह गया है। आम आदमी पहले भी राजनीति से दूर भागता था और अब वो और भी दूर भागने लगा है फलस्वरूप राजनीति में सभ्य, समझदार, संवेदनशील, आदर्शवादी, नेक और परिपक्व लोगों की घोर कमी होती जा रही है जो काफ़ी चिंताजनक है।
इन हिंसक घटनाओं की निंदा तो हो जाती है लेकिन दिखावा भर के लिए। इस बार भी विभिन्न पार्टियों ने दीदी के साथ हुई हिंसा की खुल कर निंदा की। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया ने कहा है कि बंगाल चुनावों में खिसकती जमीन से बीजेपी के नेता बौखलाहट में हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि हमले करवाना बीजेपी का चरित्र है। एक सीटिंग मुख्यमंत्री के साथ इस तरह से हमला करवाना, यह भारतीय जनता पार्टी की बौखलाहट है और ये उनका चरित्र भी है। उन्होंने कहा कि इसी तरह के हमले करके ये आगे बढ़ना चाहते हैं।
इससे पहले जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने भी सीएम ममता बनर्जी पर हुए हमले की निंदा की और कहा है कि कठिन चुनावी अभियान और संघर्ष के बावजूद किसी को भी हिंसा पर नहीं उतरना चाहिए। उन्होंने चुनाव आयोग से भी उम्मीद जताई है कि मामले की जांच में तह तक जाएगी।
राजनीतिक हिंसा की शिकार हुई दीदी की हालत में थोड़ा सुधार हुआ है। डॉक्टर ने कहा कि मुख्यमंत्री के बाएं टखने और पैर की हड्डियों में गंभीर चोटें हैं. इसके अलावा, उनके बाएं कंधे, कलाई और गर्दन में भी चोटें हैं। उनके कंधों, घायल टखने व पैर का भी एक्स-रे किया गया है। डॉक्टरों ने उनकी गर्दन का सीटी स्कैन भी किया है जबकि उनके पेट का यूएसजी किया गया है। उन्होंने बताया कि उनके रक्त में सोडियम की मात्रा कम पाई गई है, जिसके लिए दवाई दी जा रही है. डॉक्टर ने बताया कि उनके बाएं टखने की सूजन कम हुई है। उनकी स्वास्थ्य स्थिति में मामूली सुधार हुआ है।
दीदी ने अपने समर्थकों से शान्ति बरतने की अपील की है। हमले की जांच भी हो रही है। लेकिन प्रश्न ये है कि हिंसा, द्वेष, धनबल और बाहुबल के आधार पर की गई राजनीति कितनी सार्थक होगी? ऐसे आधार पर सरकारें तो बन जाती हैं पर क्या ऐसी सरकारें संवदेनशील होती हैं? क्या जनहित में कार्य किए जाते हैं। दल तो जीत जाते हैं पर जनता हार जाती है।