पलवल ( अतुल्य लोकतंत्र ): गोस्वामी गणेश दत्त सनातन धर्म पीजी महाविद्यालय, पलवल हरियाणा एवं साहित्य संचय शोध संवाद फाउंडेशन, सोनिया विहार दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में ‘हिंदी : भाषा साहित्य एवं संस्कृति’ विषय पर हिंदी दिवस के अवसर पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन गोस्वामी गणेश दत्त सनातन धर्म पीजी महाविद्यालय पलवल में किया गया। मां सरस्वती के चरणों मे पुष्पार्पित कर एवम दीप प्रज्वलित कर संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र का शुभारंभ किया गया। स्वागत भाषण में महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. प्रतिभा सिंह सिंगला ने सभी विद्वानों का स्वागत कर कहा कि सभी भारतीयों को हिन्दी बोलने पर गर्व होना चाहिये, क्योंकि भारत विविध संस्कृति वाला देश है फिर भी अनेकता में एकता की बात की जाती है और इस संस्कृति की संवाहक हमारी हिन्दी है।
विषय प्रवक्ता के रूप में सह प्राध्यापक प्रो. केशव देव शर्मा ने कहा कि ऐसी क्या आश्यकता पड़ी कि हमें हिन्दी दिवस मनाना पड़ रहा है, जबकि हमारे साहित्यकार सदा ही साहित्य और विचारों के द्वारा इसके संवाहक रहे हैं। भाषा की सीमा को संकीर्णता के दायरे में नहीं लाना चाहिए। इसलिये हिन्दी को सिर्फ लेखन के द्वारा ही नहीं अपितु जन-जन को इसकी रागात्मकता में डूबना होना। वक्ता के रूप में श्री जलवन्त सिंह जी ने कहा कि जब सुबह से शाम तक हिन्दी हमारी रग-रग में समायी है फिर भी एक दिन हिन्दी दिवस मनाने की क्या आवश्यकता है। इस सोच को बदलने के लिए हमें बच्चों के प्रारंभिक ज्ञान की बारह खड़ी में भी परिवर्तन करने की आवश्यकता है तो शायद किसी एक दिन का मोहताज नहीं होना पड़ेगा साथ ही हमारी भाषा गूंगी नहीं होगी। शासकीय महाविद्यालय फरीदाबाद से वक्ता के रूप में डॉ. प्रतिभा चौहान ने भाषा, साहित्य और संस्कृति पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्य का अस्तित्व भाषा के बिना सम्भव नहीं और साहित्य में समाज की यथा स्थिति होनी चाहिए।
हिंदी भाषा ने हमेशा जीवन मूल्यों को बनाये रखा है तथा साहित्य की समस्त विधाओं में सांस्कृतिक मूल्यों की ही बात होनी चाहिए। जिससे हमारा समाज त्याग, क्षमा और करुणा जैसे शब्दों के मायने जीवित रहें। सत्र की अध्यक्षता कर रहे डॉ. प्रवीण वर्मा ने सम्बोधित करते हुए कहा कि साहित्य संचय शोध संवाद फाउंडेशन हिन्दी की प्रगति में जो कार्य कर रहा है वह निश्चित ही सराहनीय है। जो हिन्दी को पसंद करते हैं वे सदा ही इसके प्रति कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं। हमारा देश एक परिवार है जिसमें भाषा की विविधता है फिर भी भारतीय साहित्य, संस्कृति और पूजा पद्धति एक है। हिन्दी के लिए सरकारें भी काम कर रहीं फिर चाहे प्रशिक्षण हो या दूसरे देशों में दिए गए वक्तव्य हों। प्रत्येक नागरिक को भी हिन्दी के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन ही हिन्दी को मुकाम तक पहुँचा सकते हैं। धन्यवाद ज्ञापन साहित्य संचय शोध संवाद फाउंडेशन की सचिव डॉ. सुषमा रानी ने किया।
संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में वक्ता के रूप में डॉ. सुभाषचंद्र ने संगोष्ठी के विषय को व्यापक बताते हुए साहित्य, समाज और संस्कृति एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। जिस प्रकार एक डॉक्टर बिना भेदभाव के सभी का इलाज करता है उसी प्रकार हिंदी बिना भेदभाव के सभी की भावनाओं को व्यक्त करने का कार्य करती है। पहले कहा जाता था कि पूरा विश्व एक परिवार है और अब कहा जाता है कि पूरा विश्व बाजार है। अतः हमें एक मानसिकता से बाहर आना होगा। बाजारवाद की इस धारणा को समाप्त कर भावों को व्यक्त करने के लिए समाजिक विकास के लिए हिंदी भाषा अतिआवश्यक है। इसी क्रम में हिंदी के विकास की कामना करते हुए डॉ. संजीव कुमार विश्वकर्मा तथा शोधार्थियों ने अपने शोधपत्र का वाचन किया गया।
वक्ता के रूप में राजकीय महाविद्यालय से डॉ. संगम वर्मा ने कहा कि हमने पेंसिल से लिखना सीखा था और आज उँगली से मोबाइल पर लिखने लगे हैं। इसलिये आवश्यक है कि लिपि और साहित्य के लिए नये आयाम स्थापित करने होंगे। शासकीय महाविद्यालय हटा से श्रीमती आशा राठौर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि संगोष्ठी से जब कोई निष्कर्ष और प्रश्न निकलते हैं तो संगोष्ठी औपचारिक मात्र नहीं रह जाती। हिन्दी भाषा का राजतिलक तो किया गया किन्तु आज भी वह सिंहासन विहीन है। इस बात के माध्यम से स्वतंत्रता के पूर्व और स्वतंत्रता के पश्चात हिन्दी की स्थिति पर प्रकाश डाला। हिंदी का हमारा शुक्ल पक्ष उज्ज्वल है। शिमला विश्वविद्यालय से दूसरे सत्र की अध्यक्षता कर रही डॉ. ऊषा रानी ने कहा कि जहाँ राम कृष्ण का जन्म हुआ उस भारत भूमि में एक दिन नहीं अपितु रोज हिन्दी दिवस होना चाहिए। क्योंकि भाषा के अभाव में सम्पूर्ण संस्कृति ही लोप हो जाती है। अतः भाषा का जय घोष होते रहना चाहिए। संगोष्ठी के दौरान प्राप्त आलेखों का संकलन की गई विभिन्न पुस्तकों का विमोचन किया गया तथा सभी मंच को सुशोभित कर रहे वक्ताओं का प्रतीक चिन्ह द्वारा सम्मानित किया गया। धन्यवाद ज्ञापन श्री श्रवण कुमार ने किया तथा फाउंडेशन के सह सचिव डॉ. संजय धौलपुरिया ने मंच संचालन किया।
संगोष्ठी के अगले सत्र में सम्मान समारोह कार्यक्रम के अंतर्गत फाउंडेशन की तरफ से रचनाधर्मिता, साहित्य सेवा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए श्रीमती आशा राठौर को साहित्य संचय गौरव सम्मान, डॉ. सुभाषचंद्र गुप्त को आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी सम्मान 5100/- राशि, श्री कृष्ण कुमार कनक को कमल सुनृत वाजपेयी सम्मान 3100/- राशि,श्री हरीश अग्रवाल को शब्द सेतु नवल सम्मान 2100/- राशि, डॉ. साहिरा बानो को साहित्य संचय शब्द श्री सम्मान 1100/- राशि और डॉ. रम्या जी एस नायर को साहित्य संचय शोध सम्मान 501/- की राशि के साथ सम्मानित करते हुए फाउंडेशन परिवार ने सम्मानित सदस्यों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए प्रदान किया।