नई दिल्ली/अतुल्यलोकतंत्र: 27वें दिन मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने बहस की शुरुआत की. उन्होंने कहा कि 1949 के मुकदमे के बाद सभी गवाह सामने आए. राजीव धवन ने एक हिंदू पक्ष के गवाह की गवाही के बारे में बताते हुए कहा कि गर्भगृह में 1939 में वहां पर मूर्ति नहीं थी. वहां पर बस एक फोटो था. मध्य गुम्बद की कहानी 19वें दशक से शुरू होती है. अगर वहां मंदिर था तो वह किस तरह का मंदिर था, क्या वह स्वंयम्भू था या फिर क्लासिक मंदिर था. धवन ने कहा कि इसका कोई सबूत नहीं है कि लोग रेलिंग के पास जाते थे और गुम्बद की पूजा करते थे, हिंदू केवल बाहरी हिस्से में चबूतरे पर आकर पूजा करते थे. किसी ऐसे गवाह का एक अनुमान जिसे ढंग से कुछ याद नहीं, उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए. ये कोई सबूत नहीं है. उन्होंने कहा कि जन्मस्थान और जन्मभूमि शब्द का इस्तेमाल एक ही मतलब के लिए किया जाता है.
मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा कि जन्मभूमि 1980 के बाद की घटना है, 1980 के बाद जन्मभूमि शब्द का इस्तेमाल किया गया. धवन ने कहा कि हिंदुओं ने कहीं ऐसा दावा नहीं किया कि बाहरी हिस्से में पूजा अंदरूनी हिस्से के मद्देनजर की जाती थी. ऐसा लगता है यह बात बाद में आई, गवाहों के बयानों में भी रेलिंग पर पूजा करने को लेकर कई विरोधाभास हैं.
इस पर जस्टिस बोबडे ने कहा कि इसकी ऊंचाई 6 से 8 फीट हो सकती है. मनुष्य की औसत ऊंचाई लगभग 5.5 फीट है, लेकिन दीवार इसके ऊपर 2 फीट प्रतीत होती है. वहीं, धवन ने कहा कि दीवार कूदने के लिए हमको ओलिंपिक के जिम्नास्ट होने की जरूरत नहीं है. इस पर जस्टिस भूषण ने कहा कि अंदर प्रवेश करने के लिए दीवार कूदने की जरूरत नहीं है, वहां दरवाजा है. वहीं, जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ ने कहा कि दरवाजे को हनुमान द्वार कहते हैं. इस पर धवन ने कहा कि गर्भगृह में 1939 में वहां पर मूर्ति नहीं थी, वह पर बस एक फोटो था. मूर्ति और गर्भगृह की पूजा का कोई सबूत नहीं है.
जस्टिस भूषण ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि हिंदुओं ने गर्भगृह की पूजा की इसका सबूत नहीं है. राम सूरत तिवारी नाम के गवाह ने 1935 से 2002 तक वहां पूजा करने की बात कही है. आप सबूतों को तोड़ मरोड़ के पेश कर रहे हैं, कोई भी सबूतों को तोड़ मरोड़ नहीं सकता. इस पर धवन ने कहा कि मैं सबूतों को तोड़ मरोड़ नहीं रहा. धवन ने निर्मोही अखाड़ा की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि निर्मोही अखाड़ा ने पहले राम जन्मस्थान पर दावा नहीं किया. निर्मोही अखाड़ा आंदोलन का हिस्सा रहा और 1934 में हमला कराया. अखाड़ा ने 1959 से पहले कभी अंदरूनी भाग पर अधिकार की बात नहीं की. बता दें कि कोर्ट ने मंगलवार को भी कहा था कि चबूतरे के आसपास पूजा, और गर्भगृह या मुख्य गुम्बद के नीचे की जगह पर रेलिंग से दो भाग करना इस मामले में काफी अहम है. इसके बारे में दलील दी जाए यानी हिंदू मानते रहे हैं कि मुख्य गुम्बद के नीचे ही रामलला का जन्म हुआ था.