New Delhi/Atulya Loktantra: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि दिल्ली और महाराष्ट्र सरकार के आखिरी सत्र की परीक्षाएं रद्द करने का फैसला उच्च शिक्षा को सीधा प्रभावित करेगा। यूजीसी ने यह बात कोर्ट में दोनों सरकारों द्वारा दायर हलफनामों के जवाब में कही। कोर्ट में यूजीसी के विश्वविद्यालयों / संस्थानों को सितंबर के अंत तक अंतिम परीक्षा आयोजित करने के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाएं लंबित हैं।
मामले की सुनवाई अदालत में आज होनी है। दरअसल, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अपने संशोधित दिशा-निर्देश में कहा था कि सभी कॉलेजों व विश्वविद्यालयों को 30 सितंबर तक स्नातक और स्नातकोत्तर के आखिरी सत्र की परीक्षाएं कराना अनिवार्य है। जिस पर दिल्ली और महाराष्ट्र सरकारों ने असमर्थता जताई थी और परीक्षाएं रद्द कर दी थी।
यूजीसी ने कोर्ट में कहा कि दिल्ली ने “यूजीसी के दिशानिर्देशों के उल्लंघन में ‘वैकल्पिक मूल्यांकन उपायों का उपयोग करके छात्रों के अंतिम वर्ष / सेमेस्टर परीक्षाओं को रद्द करने के लिए एकतरफा फैसला किया है। यह निर्णय “उच्च शिक्षा के मानकों के समन्वय और निर्धारण के विधायी क्षेत्र पर अतिक्रमण है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे पर जवाब देते हुए यूजीसी ने कहा कि एक ओर राज्य सरकार कह रही है कि छात्रों के हित के लिए शैक्षणिक सत्र शुरू किया जाना चाहिए, दूसरी ओर अंतिम वर्ष की परीक्षा रद्द करने और बिना परीक्षा उपाधि देने की बात कर रही है। इससे छात्रों के भविष्य को अपूरणीय क्षति होगी। इसलिए यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार के तर्क में दम नहीं है। महाराष्ट्र का हलफनामा उसके अपने ही दावे के विपरीत है।
इससे पहले 10 अगस्त को सुनवाई के दौरान यूजीसी ने दिल्ली और महाराष्ट्र में राज्य के विश्वविद्यालयों में फाइनल ईयर की परीक्षाएं रद्द करने के निर्णय पर सवाल उठाए थे और कहा था कि ये नियमों के खिलाफ है। राज्यों को परीक्षाएं रद्द करने का कोई अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से जानना चाहा कि क्या राज्य आपदा प्रबंधन कानून के तहत यूजीसी की अधिसूचना और दिशानिर्देश रद्द किये जा सकते हैं? इस पर यूजीसी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब के लिए कुछ समय मांगा था और खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 14 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी थी।