Faridabad/Atulya Loktantra : लॉकडाऊन-4 में कुछ रियायते मिलने के साथ ही कोरोना केसो में भी लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। शहर में कंपनियां खुल गई हैं लोगों को अपने काम धंधे पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। ऐसे में गरीब के पास एक मात्र साधन तिपहिया वाहन ही है जिसका फायदा ऑटो चालक उठा रहे है और दो से अधिक सवारियों को ऑटो में बिठा रहे हैं। लोगों को मजबूरीवश ऑटो में बैठना ही पड़ रहा है। अगर इसी तरह शहर में ऑटो चालकों की मनमानी चलती रही तो कोरोना संक्रमण का नया स्त्रोत तिपहिया वाहन बन जाएगा। पुलिस शहर में चल रहे ऑटो में सोशल डिस्टेंसिंग पर कोई जोर नहीं दे रही है। कोरोना संक्रमण के लिए जिले में तबलीगी जमाती और यहां की सब्जी मंडियां मुख्य स्रोत साबित हुईं। अब यहां चलने वाले तिपहिया ऑटो भी इस सूची में शामिल हो गए हैं।
20 मई बुधवार को देर रात आई स्वास्थ्य विभाग की जांच रिपोर्ट में एक फैक्ट्री की दो महिला कामगार संक्रमित पाई गई हैं। ये महिलाएं एक कॉलोनी में अपने निवास से फैक्ट्री तक आना-जाना करती थीं। फैक्ट्रियां खुलने के बाद मजदूरों पर दबाव है कि वे किसी भी तरह फैक्ट्री पहुंचे। लगभग दो महीने के लॉकडाउन ने मजदूरों को तोड़कर रख दिया है।
मजदूर फैक्ट्री जाने के लिए हालात से समझौता करने को मजबूर हैं। अधिकतर मजदूरों के लिए शहर में यातायात का एकमात्र उपलब्ध साधन तिपहिया ऑटो ही हैं। इनमें सवारियां ठूंस-ठूंसकर भरी जा रही हैं। हर नाके और मुख्य मार्गों पर पुलिस कर्मी मौजूद हैं। वे इन ऑटो को नहीं रोक रहे हैं और न ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवा रहे हैं।
इतनी मजबूरियां हैं
पुलिस कर्मियों की मनोदशा यह है कि वे किसी ऑटो को रोक भी लें, तो ऑटो चालक और सवारियों की इतनी मजबूरियां होती हैं कि पुलिस कर्मियों को पीछे हटना पड़ रहा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की गाइड लाइन के मुताबिक ऑटो में दो से ज्यादा सवारियां नहीं बैठ सकी हैं। शहर में देखने को मिल रहा है कि एक ऑटो में सात-आठ तक सवारियां बैठी हुई हैं।
ऑटो चलाना अब फायदे का सौदा नहीं
कुछ ऑटो चालकों ने बताया कि शहर में वे ही ऑटो चल रहे हैं, जिनके मालिक उन्हें स्वयं चला रहे हैं। उन्होंने बताया कि किराए के ऑटो पूरी तरह बंद हैं। वे कहते हैं कि किराए पर ऑटो लेकर चलाना अब फायदे का सौदा नहीं हैं। हालात को देखते हुए ऑटो चालक कह रहे हैं कि एक ऑटो 500-600 रुपए के किराए पर मिलता है। दिन भर में इतना काम नहीं है कि किराया भी दे दें और खुद भी कुछ कमा लें।
टीम दीपेंद्र के संयोजक जगन डागर का कहना है कि प्रशासन को फैक्ट्रियां खोलने के साथ मजदूरों के परिवहन की भी योजना बनानी चाहिए। डागर ने कहा कि मजदूर ऑटो में सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान नहीं रख पा रहे हैं और उनके संक्रमित होने का खतरा है।