Bihar/Atulya Loktantra : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा दलित कार्ड खेला है. उन्होंने अधिकारियों को ऐसा प्रावधान बनाने का निर्देश दिया है कि किसी अनुसूचित जाति-जनजाति की हत्या हो जाने पर उसके परिवार के किसी एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए.
नीतीश कुमार ने अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत सतर्कता मीटिंग में आदेश दिया कि अगर एससी-एसटी परिवार के किसी सदस्य की हत्या होती है तो वैसी स्थिति में पीड़ित परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का प्रावधान बनाया जाए. सीएम नीतीश ने अफसरों से कहा कि तत्काल इसके लिए नियम बनाएं, ताकि पीड़ित परिवार को लाभ दिया जा सके.
बिहार के विधानसभा चुनावों की घोषणा होने से ठीक पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह फैसला काफी सोच समझकर लिया है. दरअसल, बिहार की राजनीति जातीय आंकड़ों के आधार पर तय होती है. आंकड़ों की बात करें तो दलित वर्ग राज्य की सत्ता की चाबी दिलाने में निर्णायक भूमिका अदा कर सकता है. इसीलिए नीतीश कुमार चुनाव से पहले ऐसे कदम उठा रहे हैं.
बिहार का दलित समीकरण
२०११ की जनगणना के अनुसार बिहार में दलित जातियों की 16 प्रतिशत भागीदारी है. 2005 में नीतीश कुमार की सरकार ने 22 में से 21 दलित जातियों को महादलित घोषित कर दिया था और 2018 में पासवान भी महादलित वर्ग में शामिल हो गए. इस हिसाब से बिहार में अब दलित के बदले महादलित जातियां ही रह गई हैं.
सूबे में 16 फीसदी दलित समुदाय में अधिक मुसहर, रविदास और पासवान समाज की जनसंख्या है. वर्तमान में साढ़े पांच फीसदी से अधिक मुसहर, चार फीसदी रविदास और साढ़े तीन फीसदी से अधिक पासवान जाति के लोग हैं. इनके अलावा धोबी, पासी, गोड़ आदि जातियों की भागीदारी अच्छी खासी है.