New Delhi/Atulya Loktantra : नेपाल के नया राजनीतिक नक्शा जारी करने के बाद भारतीय आर्मी चीफ मनोज नरवणे ने एक बयान में कहा था कि नेपाल किसी तीसरे के इशारे पर ऐसा कर रहा है. उनका इशारा चीन की तरफ था. आर्मी चीफ के इस बयान पर काफी हंगामा हुआ. हाल ही में जब नेपाल की चीनी राजदूत से भी इसे लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने इसे बेबुनियाद आरोप बताकर खारिज कर दिया. नेपाल की चीनी राजदूत होई यान्की ने कहा था कि नेपाल-चीन के रिश्ते की गरिमा कम करने के मकसद से ऐसा कहा जा रहा है. हालांकि, अब जब नेपाल की घरेलू राजनीति में उथल-पुथल मची हुई है तो चीनी राजदूत खुले तौर पर दखल देती नजर आ रही हैं. यहां तक कि नेपाल के भीतर ही सवाल खड़े होने लगे हैं कि एक राजदूत घरेलू राजनीति में इतनी दखलंदाजी क्यों कर रही हैं?
नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली की कुर्सी खतरे में है और पार्टी के वरिष्ठ नेता उनसे इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी दो खेमे में बंट गई है. एक ओली का खेमा और दूसरा पूर्व प्रधानमंत्री और पार्टी प्रमुख पुष्प कमल दहल प्रचंड-माधव नेपाल का खेमा. नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की 44 सदस्यीय स्टैंडिंग कमिटी के 30 सदस्यों ने 30 जून को ओली के पार्टी प्रमुख और प्रधानमंत्री दोनों पदों से इस्तीफे की मांग की थी. इनमें प्रचंड और माधव नेपाल के अलावा, झाला नाथ और बामदेव गौतम जैसे वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं.
नेपाल में सियासी उठापठक के बीच चीनी राजदूत होउ यॉन्की की सक्रियता हैरान करने वाली है. वह पिछले कुछ दिनों में नेपाल के तमाम सरकारी अधिकारियों और पार्टी के शीर्ष नेताओं से मुलाकात कर चुकी हैं. पिछले हफ्ते ही होउ ने नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या भंडारी और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल से मुलाकात की.
चीनी राजदूत होउ यान्की ने 3 जुलाई यानी शुक्रवार को राष्ट्रपति से मुलाकात की. इसे महज शिष्टाचार मुलाकात का नाम दिया जा रहा है. हालांकि, राष्ट्रपति बिद्या भंडारी की भूमिका को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. भंडारी से मुलाकात के बाद ही गुरुवार को ओली ने संसद रद्द कराने का फैसला किया और अपने विरोधी खेमे के खिलाफ और सख्त रुख अपना लिया.
नेपाल के विदेश मंत्रालय के कुछ अधिकारियों ने बताया है कि चीनी राजदूत से मुलाकात में राष्ट्रपति कार्यालय की तरफ से राजनयिक आचार संहिता का भी उल्लंघन किया जा रहा है. विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने अन्नपूर्णा पोस्ट से कहा, विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी की राष्ट्रपति भवन में तैनाती होती है ताकि वह विदेशी राजनयिकों और प्रतिनिधियों से मुलाकातों के बारे में ब्रीफ कर सके लेकिन भंडारी और होउ के बीच हुई मुलाकात के बारे में विदेश मंत्रालय के अधिकारी को सूचित ही नहीं किया गया. जबकि आचार संहिता के मुताबिक इस तरह की मुलाकात में विदेश मंत्रालय के अधिकारी का रहना अनिवार्य है. इस तरह हो रहीं मुलाकातों का कोई आधिकारिक रिकार्ड ही नहीं है.
रविवार की शाम को चीनी राजदूत होउ ने पार्टी के वरिष्ठ नेता माधव नेपाल से मुलाकात की. माधव नेपाल पार्टी के विदेश विभाग के अध्यक्ष भी हैं. सूत्रों के मुताबिक, दोनों के बीच पार्टी के भीतर चल रहे विवाद को लेकर ही चर्चा हुई. होउ ने सभी पक्षों से संयम से काम लेने के लिए कहा. कहा जा रहा है कि चीनी प्रोटोकॉल के हिसाब से माधव नेपाल से मुलाकात के पहले वह पार्टी के दोनों अध्यक्षों ओली और प्रचंड से पहले ही मुलाकात कर चुकी होंगी.
होउ ने ओली के विरोधी खेमे के एक और नेता झाला नाथ खनल से भी सोमवार को मुलाकात की. झाला के एक करीबी के मुताबिक, इस बैठक में भी घरूले राजनीति में मचे घमासान को लेकर ही चर्चा हुई. सूत्रों का कहना है कि चीनी राजदूत पार्टी के नेताओं को एकजुट रहने की सलाह दे रही हैं क्योंकि बीजिंग को नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता को लेकर चिंता सता रही है.
मई की शुरुआत में जब पार्टी के भीतर मतभेद नजर आने लगे थे, उस वक्त भी होउ ने ओली, दहल और पार्टी के अन्य नेताओं से मुलाकात की थी और पार्टी की एकता बनाए रखने की अपील की थी. लेकिन चीनी राजदूत इतनी मशक्कत क्यों कर रही हैं? आखिर चीन क्या चाहता है? चीनी दूतावास के प्रवक्ता झांग सी ने काठमांडू पोस्ट से कहा कि चीन नहीं चाहता है कि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी किसी मुश्किल में फंसे और इसीलिए पार्टी के नेताओं को एक रखने और उनके मतभेद सुलझाने की कोशिशें कर रहा है. दरअसल, नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी का झुकाव चीन की तरफ रहा है. चीनी प्रवक्ता ने कहा कि चीनी दूतावास के पार्टी के नेताओं के साथ काफी मधुर संबंध हैं और वे किसी भी साझा हित के मुद्दे पर एक-दूसरे की राय को सुन सकते हैं.
हालांकि, नेपाल के रणनीतिकारों को चीनी राजदूत की ये दखलंदाजी खटक रही है, खासकर ऐसे वक्त में जब सत्तारूढ़ पार्टी संकट की घड़ी से गुजर रही है. नेपाल के पूर्व राजदूत लोकराज बराल ने कहा, “अपनी घरेलू राजनीति में विदेशी दखल को आमंत्रित करने के लिए मैं अपने ही नेताओं को दोषी ठहराऊंगा. पहले दूसरे देशों के नेता हमारे आंतरिक मामले में शामिल होते थे और अब चीनी दखल देने लगे हैं.
बराल ने नेपाल के भारत और चीन के साथ बदलते संबंध को लेकर भी इशारा किया. उन्होंने कहा कि अब भारत को चीन की तुलना में ज्यादा संदेह से देखा जाने लगा है. उन्होंने कहा, भारतीय राजदूतों की बात आने पर हम इसे हस्तक्षेप कहते थे लेकिन चीनी पर ये बात लागू नहीं होती है. केवल मीडिया इस मुद्दे को उठाता है लेकिन राजनीतिक और बुद्धजीवियों को इसमें कोई दिक्कत नहीं है.