मेटावर्स को एक उदाहरण से ज़रा यूं समझिये – पहले आप लोगों से फोन पर बात करते तो उनको देख नहीं पाते थे, अब विडियो कॉल होती है । लेकिन मेटावर्स की दुनिया में आप किसी को कॉल करके जब बात करेंगे तो लगेगा मानो वो इंसान आपके बगल में बैठा है। यानी पूरी तरह वर्चुअल। आप ऑफिस की ज़ूम मीटिंग करेंगे तो लगेगा आप एक दूसरे को छू सकते हैं। ये होगी मेटावर्स की दुनिया। सवाल है कि मेटावर्स ही नाम क्यों? तो जान लीजिये कि मेटा एक ग्रीक शब्द है जिसका मतलब होता है बियॉन्ड यानी ‘आगे’ और वर्स है यूनिवर्स यानी ब्रम्हांड, तो मेटावर्स हुआ इस यूनिवर्स यानी ब्रम्हांड से आगे की बात।
दरअसल, दुनिया कुछ हद तक मेटावर्स को फिलहाल बस छू भर रही है। इसकी एक अवांछित वजह है , कोरोना महामारी। महामारी के दौरान जीवन का बहुत कुछ मजबूरन डिजिटल हो गया है। सोशलाईजिंग से लेकर शॉपिंग और मीटिंग तक सब कुछ डिजिटल हो चुका है। मेटावर्स की बात तो पिछले कुछ सालों से चल रही थी । लेकिन 2021 में लोग इसके बारे में गंभीरता से बात करना शुरू किया है शायद ये कोई इत्तेफाक नहीं है क्योंकि कोरोना की वजह से इन बातों में तेजी आई है । लेकिन अभी हम जितना डिजिटल हुए हैं , वो मेटावर्स का तिनका भर नहीं है। क्योंकि मेटावर्स वास्तविकता या असली दुनिया में ऊपर, नीचे, चारों ओर तैरती सच्चाई की एक डिजिटल परत है। यह असली दिखती है ।लेकिन असली नहीं होती है।
एक कल्पना कीजिये कि आप सड़क पर जा रहे हैं और आपको कोई प्रोडक्ट याद आता है। तुरंत ही सड़क के किनारे एक वेंडिंग मशीन प्रगट हो जाती है, जिसमें वो सब प्रोडक्ट भरे पड़े हैं , जिनके बारे में आप सोच रहे थे। आप रुक कर अपना आइटम चुनते हैं। ये सब वर्चुअल हो रहा है। इसके बाद वो आइटम आपके घर पहुंचा दिया जाता है।