OPEC: ओपेक (OPEC) की गिरोहबंदी के चलते दुनियाभर के नेता परेशान हैं। वजह ये कि ईंधन के ऊंचे दामों से जनता के बीच नाराजगी, आक्रोश और निराशा बढ़ती जा रही है। और इसका असर नेताओं की लोकप्रियता पर पड़ने लगा है। ओपेक (OPEC full Form) को रास्ते पर लाने के लिए कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। एकमात्र तात्कालिक उपाय है अपने आपात तेल भंडार का इस्तेमाल ताकि सप्लाई बढ़े और दाम घटें। लेकिन उम्मीद लगाना बेमानी है क्योंकि ऐसा शायद ही हो।
दुनिया में अधिकांश तेल प्रोडक्श ओपेक करते हैं
ओपेक यानी तेल उत्पादक देशों का कुख्यात गिरोह जिसमें बड़ी संख्या मिडिल ईस्ट के देशों की है। ये गिरोह या कार्टेल महीनों से तेल सप्लाई नहीं बढ़ाने पर अड़ा हुआ है। कोरोना के कारण पिछले साल डिमांड की तुलना में बहुत ज्यादा सप्लाई थी लेकिन अब हालात उलट हैं। डिमांड आसमान छू रही है। ओपेक ये जानता है। होना तो ये चाहिए कि महामारी से बुरी तरह प्रभावित अर्थव्यवस्था की रिकवरी के लिए वो आगे बढ़ कर आये और रिकवरी में योगदान करे। दुनिया में अधिकांश तेल प्रोडक्शन (Oil production) यही ओपेक देश करते हैं लेकिन अब मदद करना तो दूर, ओपेक टस से मस नहीं हो रहा है। ऐसे में भारत, जापान और चीन जैसे तेल के बड़े उपभोक्ता देश व्यग्र और हताश हो रहे हैं। ओपेक कार्टेल से बारबार आग्रह किया जा रहा है कि वह प्रोडक्शन बढ़ाये ताकि कीमतें हाथ से बाहर न निकल जाएं। भारत सरकार ने मार्च में ही ये कवायद की थी जब पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (Petroleum Minister Dharmendra Pradhan) ने सऊदी अरब और ओपेक से प्रोडक्शन बढ़ाने और दाम स्थिर करने का आग्रह किया था। इसके जवाब में सऊदी तेल मंत्री ने कहा था कि भारत को अपने आपात तेल भंडार का इस्तेमाल करना चाहिए।