श्रीकेदारनाथ धाम – एक परिदृश्य-
जिस प्रकार नदियों में गंगा, पर्वतों में कैलाश, योगियों में याज्ञवल्क्य, भक्तों में नारद, शिला में शालिग्राम, अरण्यों में बद्रिकावन धेनुओं में कामधेनु, मुनियों में सुखदेव, सर्वज्ञों में व्यास और देशों में भारत सर्वश्रेष्ठ है उसी प्रकार तीर्थों में भृगुतुगं पर्वत पर भृगुशिला और वहां स्थित केदार तीर्थ सर्वश्रेष्ठ हैं। इसी भृगु तुंग पर्वत की भृगुशिला पर तप करने से गो हत्या, ब्रह्म हत्या, कुल हत्या के पाप से भी मुक्ति मिल जाती है।
केदारखंड में भक्तों को यह भी सावधान किया जाता है कि केदार तीर्थ के दर्शनों के बगैर बद्रीनाथ चले जाने से यात्रा निष्फल हो जाती है। फलत: वामावर्त यात्रा विधान चलता है अर्थात बायें से यात्रा करते हुए यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ होकर तब बद्रीनाथ की यात्रा पर जाया जाता है।
केदारनाथ विराट और भव्यतम तीर्थ
जैसे हिमालय को प्रकृति का सर्वोच्च महामंदिर माना जाता है उसी प्रकार केदार तीर्थ और मंदिर को उत्तराखंड के विराट और भव्यतम तीर्थ की संज्ञा प्रदान की जाती है। ज्ञातव्य है कि हिमालय के पांच प्रमुख खंडों की गणना करते हुए पुराणों में स्थित पांच प्रधान तीर्थों की अवधारणा है – नेपाल में पशुपतिनाथ, कूर्मांचल में जागेश्वर, केदारखंड में केदारनाथ, हिमाचल में बैजनाथ और कश्मीर में अमरनाथ।
केदार तीर्थ की महत्वपूर्ण अवस्थिति के कारण ही गढ़वाल का प्राचीन नाम केदारखंड पड़ा, और जब इस भूमि के तीर्थों की महत्ता का प्रतिपादन एक पुराण में हुआ तो उसका नाम केदारखंड पुराण ही रखा गया। अतः श्रीकेदारनाथ धाम की महत्ता के कारण ही स्कंद पुराण में यह क्षेत्र केदारखंड के नाम से उल्लिखित है।
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक
वर्तमान उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में अवस्थित श्री केदारनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर समुद्र तल से 11753 फुट (3583 मीटर )की ऊंचाई पर महापंथ शिखर के नीचे एक हिमानी उत्तल पर मंदाकिनी उद्गम के समीप उसके वाम तल पर स्थित है। यह मंदिर खर्चा खंड और भरतखंड शिखरों के पास केदार शिखर पर स्थित है जिसके वाम भाग में पुरंदर पर्वत है।
कैसी है मंदिर की बनावट
श्रीकेदारनाथ धाम का मंदिर कत्यूरी शैली में निर्मित है। मंदिर की रचना लगभग 6 फुट ऊंचे पाद वेणिबंध पर है। चबूतरे के बाहर चारों ओर बड़ा खुला अहाता है। इसके निर्माण में भूरे रंग के विशाल पत्थरों का प्रयोग किया गया है। यह मंदिर छत्र प्रसाद युक्त है। इसके गर्भगृह में त्रिकोण आकृति की एक बहुत बड़ी ग्रेनाइट की शीला है। ग्रेनाइट शीला का पूरा भाग पर्याप्त ऊंचाई तक उभरा है जिसका यात्रीगण उदक कुंड से ताम्रकलश में जल भरकर अभिषेक करते हैं और अंकमाल पर मस्तक छुवाते हैं।