अग्निपथ योजना को लेकर आए दिन कोई ना कोई विवाद हो रहा है। सेना में भर्ती के लिए जाति प्रमाणपत्र और धर्म प्रमाण पत्र मांगने को लेकर बवाल मचा हुआ है। विपक्ष सवाल खड़े कर रहा है कि भारत के इतिहास में पहली बार उम्मीदवारों से जाति प्रमाण पत्र मांगा जा रहा है। आम आदमी के पार्टी के सांसद संजय सिंह समेत कई विपक्षी सांसदों ने अग्निपथ योजना पर सवाल उठाते हुए सरकार पर निशाना साधा है।वहीं, जाति प्रमाण पत्र मांगने के विवाद पर सफाई देते हुए सरकार ने इस दावे को फर्जी बताया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आजादी के पहले से जो सिस्टम चला आ रहा है, वही सिस्टम अब भी है। इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने ट्वीट करते हुए लिखा, “मोदी सरकार का घटिया चेहरा देश के सामने आ चुका है। क्या नरेंद्र मोदी पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों को सेना में भर्ती होने के काबिल नहीं मानते? भारत के इतिहास में पहली बार सेना भर्ती में जाति पूछी जा रही है। मोदी आपको अग्निवीर बनाना है, या जातिवीर।”
PIB फैक्ट चेक का दावा
प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो फैक्ट चेक ने भी संजय सिंह के इस दावे को झूठा बताया है। फैक्ट चेक में लिखा है कि, “जैसा कि दावा हो रहा है कि भारत के इतिहास में पहली बार सेना भर्ती में जाति पूछी जा रही है। ये दावा बिलकुल गलत है। सेना भर्ती के लिए जाति प्रमाण पत्र दिखाने का प्रावधान पहले से ही है। इसमें विशेष रूप से अग्निपथ योजना के लिए कोई बदलाव नहीं किया गया है।”
सैन्य अधिकारियों ने दी सफाई
सेना ने भी जाति व धर्म प्रमाण पत्र मांगने पर सफाई दी है। सैन्य अधिकारियों ने कहा कि पहले भी जाति व धर्म प्रमाणपत्र मांगा जाता रहा है। अग्निपथ योजना के तहत सेना भर्ती प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं किया गया है। आपको बता दें कि 2017 और इसके बाद भर्ती रैली के नोटिफिकेशन में जाति प्रमाण पत्र के लिए लिखे जाने लगा कि सभी जाति के कैंडिडेट्स को डॉक्यूमेंट देना जरूरी है। 2018 से नोटिफिकेशन में अलग से धर्म के बारे में पूछा जाने लगा। 2018 के एक नोटिफिकेशन में लिखा है कि अगर जाति प्रमाण पत्र में धर्म के बारे में नहीं लिखा है तो उम्मीदवार को अलग से इसका प्रमाण पत्र देना होगा। इसके बाद से हर नोटिफिकेशन में इसका उल्लेख किया जाने लगा।