आबादी का गणित हमेशा से ही दुनिया को बदलने में अहम भूमिका निभाता रहा है। सच है कि आज बढ़ती आबादी का संकट दुनिया के लिए भयावह चुनौती बन चुका है। इस बारे में विख्यात ऑस्ट्रेलियन वैज्ञानिक और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनीवर्सिटी में माइक्रोबायलाॅजी के प्रोफेसर 95 वर्षीय फ्रैंक फेनर की एक दशक पहले दी गयी चेतावनी काफी महत्वपूर्ण है। उनके अनुसार -“मानव जाति जनसंख्या विस्फोट और प्राकृतिक संसाधनों की बेलगाम खपत को बर्दाश्त नहीं कर पायेगी”।
नतीजतन अगले सौ सालों में धरती पर से मानव जाति का खात्मा हो जायेगा। संभवतः अगले 100 सालों के अंदर होमो सेपियंस यानी मानव लुप्त हो जायेंगे। अनेक अन्य जीवों का भी खात्मा हो जायेगा। इस स्थिति को बदला नहीं जा सकता। मेरे हिसाब से अब बहुत देर हो चुकी है। मैं यह इसलिए नहीं कह रहा हूं कि लोग कुछ करने की कोशिश में हैं। बल्कि वे इसकी तरफ से अब भी मुंह मोड़े हुए हैं। मानव जाति अब एन्थ्रोपोसीन नामक अनधिकृत वैज्ञानिक युग में प्रवेश कर चुकी है। इस युग को औद्यौगिक युग के बाद के समय को कहा गया है। पृथ्वी पर इसका प्रभाव धूमकेतु या हिमयुग के पृथ्वी पर पड़ने वाली टक्कर जैसा पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन की भी मानव जाति के खात्मे की दिशा में उल्टी गिनती के लिए अहम भूमिका है। जलवायु परिवर्तन महज एक शुरूआत है जबकि हमें मौसम में होने वाले बदलाव काफी पहले दिखने शुरू हो गए थे। संभवतः मानव जाति भी उसी राह पर चल रही है जिस पर वे तमाम प्रजातियां चलीं जो आज विलुप्त हो चुकी हैं।’’
संयुक्त राष्ट्र् की रिपोर्ट में कहा गया है कि 1968 में आयोजित अन्तराष्ट्रीय मानवाधिकार सम्मेलन में अभिभावकों को बच्चों की संख्या चुनने का अधिकार मिला था। इस अहम बदलाव के जरिए महिलाओं को बच्चे को जन्म देने और अनचाहे बच्चे को दुनिया में लाने से रोकने का अधिकार मिला। साथ ही लड़के-लड़कियों के सशक्तिकरण, सभी को प्राथमिक शिक्षा मुहैया कराने, यौनजनित बीमारियों के प्रति जागरूकता फैलाने व बालिकाओं के अधिकारों के लिए कानूनी प्रावधानों पर भी जोर दिया गया था। लेकिन जो हुआ, वह सबके सामने है। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि 2050 तक दुनिया के जिन नौ देशों में दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी की बढ़ोतरी होगी, उनमें भारत शीर्ष पर है। उस सूची में भारत के बाद नाइजीरिया, पाकिस्तान, डेमोक्रेटिेक रिपब्लिकन आॅफ कांगो, इथियोपिया, तंजानिया, इंडोनेशिया, मिस्र और अमरीका हैं। इन देशों को बूढ़ी होती आबादी की चुनौतियों से भी जूझना होगा।
इसमें दो राय नहीं कि हमारे यहां जनसंख्या नियंत्रण के प्रयासों को नाकाम करने में जाति-धर्म के नाम पर अपनी रोटी सेंकने वाले स्वयंभू ठेकेदारों और राजनैतिक दलों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। इसी के बलबूते वे सत्ता के शीर्ष पर पहुंचते रहे हैं। इस दिशा में कानून का अभाव हमारे राजनैतिक नेतृत्व की विफलता का सबूत है। लोक कल्याणकारी सरकारों का दायित्व है कि वह देशहित को सर्वोपरि मान धर्म-जाति के मोह को त्याग कठिन निर्णय ले। यह जानते हुए कि जनसंख्या वृद्धि राष्ट्र् के सर्वांगीण विकास में सबसे बड़ा अभिशाप है।
जनसंख्या नियंत्रण की प्रभावी नीति के बिना वह चाहे रोजगार, भोजन, आवास, चिकित्सा, शिक्षा, कुपोषण, स्वास्थ्य, सुरक्षा, जैसी मूलभूत आवश्यकताए हों या फिर प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा-सुरक्षा हो, पर्यावरण, प्रदूषण, आवागमन, सिंचाई, पेयजल, संचार या विज्ञान, तकनीक या फिर विकास आदि के अन्य सवालों से निपटना आसान नहीं है। जनसंख्या वृद्धि रूपी नासूर का इलाज अब बेहद जरूरी है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो दुनिया के मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हाॅकिंग की चेतावनी आने वाले दिनों में सही साबित होगी कि पृथ्वी पर टिके रहने में हमारी प्रजाति का कोई दीर्घकालिक भविष्य नहीं है। यदि मनुष्य बचे रहना चाहता है तो उसे 200 से 500 साल के अंदर पृथ्वी को छोड़कर अंतरिक्ष में नया ठिकाना खोज लेना होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं चर्चित पर्यावरणविद हैं।)