एक ओर जहां हमारे देश में कोरोना महामारी का प्रकोप जारी है
- वहीं देश के वरिष्ठ उद्योगपतियों
- फिल्म जगत के दिग्गज कलाकारों
- बड़े समाजसेवियों
- सामान्य नागरिकों
- सरकारी कर्मचारियों
जहां तक राजनेताओं की बात करूं,
मैं पूरे देश की बात नहीं करता, सिर्फ अपने शहर फरीदाबाद की बात करता हूं,
जिले के कितने चुने हुए प्रतिनिधियों ने अपने निजी कोश से प्रदेश अथवा प्रधानमंत्री राहत कोष में सहायता राशि दी है ?
- कोई एक आध व्यक्ति अपवाद हो सकता है, लेकिन अधिकतर ने नहीं दिया योगदान। ये लोग इतने बेशर्म हो गए हैं कि निजी कोश से तो दूर की बात है, ये इस नाजुक हालात में कम से कम, इन्हे मिल रहे फालतू के भत्ते, इत्यादि का तो त्याग कर सकते हैं. लेकिन नहीं करेंगे , यहां तक कि जनता तक से दूरियां बनाई हुई हैं ।
- बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है आज नेताओं की आंख में कोई नैतिक शर्म नहीं है । आज इनका एकमात्र ध्येय किसी तरह सत्ता/ कुर्सी की प्राप्ति एवं सत्ता की मलाई प्राप्त करना है , उसके लिए ये पांच साल ड्रामे से अधिक कुछ नहीं करते , जिसे हमारी भोली भाली जनता नहीं समझ पाती है एवं इन्हें वोट की अतुल्य ताकत से विधानसभा, लोकसभा में सदस्य बना कर भेजती है , वहां पहुंचते ही इनकी आंखों में बेशर्मी का बाल आ जाता है , तब इन्हें परिवारवाद के सिवा कुछ नहीं दिखता।
- चुनावी हलफनामों में इनकी इतनी सम्पत्ति होती है कि देखने वालों की आंखे फट जाए। जब सत्ता के पांच साल पूरा करते हैं तो वह हलफनामे की घोषित संपति बीस गुना से दो सौ गुना बढ़ जाती है यह सभी जानते हैं लेकिन तब भी यही लोग सांसद, विधायक चुन लिए जाते हैं ..यह आश्चरयजनक है।
देश के सभी धनी नेताओं, सांसदों, विधायकों से अपील है
- वे आपदा में जनता के दुख दर्द में हाथ बताएं, यह आने वाले युवा पीढ़ी के नेताओं को नैतिक जिम्मेदारी का अहसास कराएगी, वरना जो स्थिति चल रही है वह तो है ही।
- अपने शहर फरीदाबाद के समस्त निवासियों व देशवासियों से यही कहना चाहता हूं कि आपदा में जो नेता, समाजसेवी या कोई भी शहर का नागरिक अच्छी सेवा कर रहा हो आपकी अथवा शहर की आप उन्हें भविष्य में नेता चुनें यह समाज के लिए अच्छा होगा। मैं निजी तौर पर उन सभी लोगों, संस्थाओं को सैल्यूट करता हूं जो खुल कर इंसानियत की खिदमत कर रहे हैं।
- आज हरियाणा के कैबिनेट मंत्री रणजीत सिंह चौटाला जी ने कोरोना महामारी के अंत तक अपनी तनख्वाह महामारी पीड़ितों के राहत कोष में जमा कराने एवं अपनी निधि से तीन करोड़ रुपए भी राहत हेतु देने की घोषणा का स्वागत किया जाना चाहिए यह नसीहत है , उन नेताओं को जिनकी नैतिकता एवं इंसानियत मर चुकी है।
कोरोना महामारी के चलते देश में हुए लॉक डाउन से जहां लाखों की तादाद में मजदूर तबका हताश, परेशान, भूखा है वहीं मध्यम वर्ग भी इस स्थिति को नहीं सह पाएगा यदि यह स्थिति लंबे समय तक चलेगी।
समाजसेवी , उद्योगपति एवं चंद विपक्षी नेता गरीबों की सेवा खुले हाथ से कर रहे हैं लेकिन जिनकी सरकार प्रदेश में है उनकी आंखे गरीबों के लिए बहुत देर से खुली। कोरोना महामारी के चलते देश में हुए लॉक डाउन से जहां लाखों की तादाद में मजदूर तबका हताश, परेशान, भूखा है वहीं मध्यम वर्ग भी इस स्थिति को नहीं सह पाएगा यदि यह स्थिति लंबे समय तक चलेगी।
वह ऐसी स्थिति में अपने निजी कोश से खुल कर देश , समाज की सेवा करे। क्या वे कुछ समय के लिए उन्हें मिल रही सेवाओं का जनहित में त्याग नहीं कर सकते। ये लोग इतना भी नहीं जानते कि यदि ये नेता ऐसा करते तो इनका मान प्रतिष्ठा जनता की नजर में और बढ़ता । लेकिन जो लेना ही जानते हों , वे क्या जानें ये बातें।
समाजसेवी , उद्योगपति एवं चंद विपक्षी नेता गरीबों की सेवा खुले हाथ से कर रहे हैं लेकिन जिनकी सरकार प्रदेश में है उनकी आंखे गरीबों के लिए बहुत देर से खुली। कोरोना महामारी के चलते देश में हुए लॉक डाउन से जहां लाखों की तादाद में मजदूर तबका हताश, परेशान, भूखा है वहीं मध्यम वर्ग भी इस स्थिति को नहीं सह पाएगा यदि यह स्थिति लंबे समय तक चलेगी।
कि वे अपने निजी अकाउंट से देश, प्रदेश को अमुक राशि दे रहे हैं या देंगे। लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ , यह स्थिति देश के अधिकतर सांसदों की है। जो बताती है इन नेताओं की कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं, सिर्फ वोट मांगने का हक है इन्हें।