दुनिया भर में जो निष्प्रयोज्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अपने उपयोगी जीवन की समाप्ति के बाद भारी मात्रा में जमा हो रहे है, उन्हें इलेक्ट्रॉनिक कचरा (ई–कचरा) कहते हैं । यह पर्यावरण के लिए एक तरह का प्रदूषण भी पैदा करता है उससे भी अधिक घातक हैं । इसी प्रकार उपयोग किए गए इलेक्ट्रॉनिक्स जो पुन: उपयोग (Re-use) , पुनर्विक्रय (Resell), निस्तारण (Dispose), पुनर्चक्रण या निपटान (Recycle or Dispose) के लिए नियत हैं, उन्हें भी ई-कचरा (E-waste) माना जाता है।
विकसित व विकासशील देशों (developed and developing countries) में पिछले वर्ष 2020 के आकड़ो के अनुसार ई-कचरे के रूप में प्रतिवर्ष 53.6 मिलियन टन कचरा निकल रहा है, जिसमें चीन सबसे अधिक 10.1 मिलियन टन, दूसरे स्थान पर तथा भारतवर्ष 3.2 मिलियन टन उत्पन्न कर तीसरे स्थान पर है | सीपीयू जैसे इलेक्ट्रॉनिक स्क्रैप घटकों मं लेड, कैडमियम, बेरिलियम, या ब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट्स जैसे संभावित हानिकारक घटक होते हैं। ई-कचरे के पुनर्चक्रण व निपटान और रीसाइक्लिंग कार्यों में और लैंडफिल व भस्मक धातुओं जैसी सामग्री के रिसाव से बचने के लिए बहुत सावधानी बरतनी चाहिए।
मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए सख्त ई-कचरा रेगुलेशन सभी देशो को बनाना और अनुपालन सुनिश्चित करना होगा, यह बात डा. भरत राज सिह,पर्यावरणविद व महानिदेशक, स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट साइंसेज, लखनऊ ने इंस्टीटयूसन ऑफ़ इंजीनियर्स, गोरखपुर द्वारा आयोजित एक वेबिनार में मुख्यअतिथि व वक्ता के रूप में कही।
इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियर्स गोरखपुर के अध्यक्ष , धीरेन्द्र चतुर्वेदी ने अतिथियों का स्वागत व वेद प्रकाश गुप्ता, मानद सचिव ने वेबिनार में सामिल सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद ज्ञापित किया |