डी.ए.वी. शताब्दी महाविद्यालय में ‘रंगशाला: जीवन की पाठशाला’ विषय पर एक सेमिनार का आयोजन हुआ | कार्यक्रम में मुख्य अतिथि व् वक्ता के रूप में महाविद्यालय के पूर्व छात्र एवं वर्तमान में एन. एस. डी., वाराणसी के डायरेक्टर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान पुरस्कार से सम्मानित, श्री रामजी बाली ने शिरकत की | रामजी बाली ना केवल एक कुशल रंगमंच कर्मी रहे हैं, बल्कि भारतीय सिनेमा की कुछ अद्वितीय फिल्मों जैसे पान सिंह तोमर, कमांडो आदि में यादगार सह-कलाकार की भूमिका निभा चुके हैं | एलुमिनी सीरीज के तहत आयोजित इस सेमिनार का उद्देश्य छात्रों को एक रंगमंच कर्मी के नजरिये से जीवन का किस तरह अवलोकन करना चाहिए, बताना रहा |
महाविद्यालय के मंच पर आते ही रामजी बाली भावुक हो गए और उन्होंने कहा कि मायका क्या होता है, एक पुरुष होने के नाते,आज मुझे महाविद्यालय आने पर समझ में आया | उन्होंने महाविद्यालय में शिक्षण के दौरान हुए व् रंगमंच अभ्यास से जुड़े अनुभवों को छात्रों से सांझा किया। उन्होंने कहा कि ये कला ही है जो हमें जानवर से अलग करती है, सभी प्राणियों की मुख्य क्रियाएं एक जैसी ही होती हैं, परन्तु मनुष्य विचार करता है और विचार से ही कला का जन्म होता है |