आरबीआई का कहना है कि यह जनता की सुरक्षा के लिए किया गया है। दरअसल, यह दिशा निर्देश ऐसे पेमेंट एग्रीगेटरों के लिए जारी किए गए हैं जिनकी मदद से ई-कॉमर्स कंपनियां आपसे भुगतान लेती हैं।
अभी तक पेमेंट एग्रीगेटर ग्राहकों को यह विकल्प देते थे कि अगर वो चाहें तो उनके कार्ड का नंबर वेबसाइट या ऐप में स्टोर कर सकते हैं ताकि अगली बार जब वो कोई भुगतान करें तो उन्हें कार्ड का कई अंकों का नंबर टाइप न करना पड़े। बस कार्ड के एक्सपायरी की तारीख और सीवीवी नंबर टाइप करना होता था और एक क्लिक में काम हो जाता था। लेकिन आरबीआई ने कार्ड के नंबर स्टोर करने को ग्राहकों के लिए खतरनाक पाया है। रिजर्व बैंक के अनुसार स्टोर किए हुए कार्ड के नंबर का इस्तेमाल कर ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। डेटा चुराने वाले कई तरह के वायरस के जरिए क्रेडिट कार्ड का नंबर और बाकी जानकारी चुरा सकते हैं। डार्क वेब पर तो इस तरह के चुराए हुए डाटा का पूरा अवैध बाजार मौजूद है। इसके अलावा हैकर तमाम कंपनियों के डेटाबेस को हैक कर उसे अवैध रूप से हासिल कर लेते हैं। इस डेटाबेस में ग्राहकों की निजी जानकारी और उनके कार्डों की सारी जानकारी होती है, जिन्हें हैकर बेच देते हैं।
बढ़ती जा रही डेटा चोरी
भारत में कंपनियों पर हैकरों के हमले और उनसे हुई डेटा चोरी के मामले काफी बढ़ गए हैं। हैकर कंपनियों के डेटाबेस को हैक कर उसे हासिल कर लेते हैं। फिर उनका इस्तेमाल करके चोरी करते हैं। अप्रैल, 2021 में मोबाइल वॉलेट और पेमेंट ऐप मोबिक्विक इस्तेमाल करने वाले 11 करोड़ लोगों का डेटा चोरी होने की और डार्क वेब पर खरीदने के लिए उपलब्ध होने की खबर आई थी। चूँकि कोरोना महामारी के शुरू होने के बाद से ऑनलाइन पेमेंट बहुत बढ़ गया है सो डेटा चोरी की घटनाएँ भी बढ़ गई हैं। वैसे भारत में कई तरह के कार्डों पर बीमा भी मिलता है। अगर किसी के साथ कार्ड से संबंधित धोखाधड़ी हो जाए तो वो एफआईआर दर्ज करा कर बीमे के तहत तय राशि पाने के लिए दावा कर सकता है। यह राशि देने की ज़िम्मेदारी कार्ड देने वाले बैंक की होती है। लेकिन ज्यदातर लोग बीमा करते नहीं हैं । बहुत से लोगों को इसकी जानकारी भी नहीं होती है।