गुजरात के मोरबी ब्रिज हादसा मामले में मोरबी नगर निगम ने अपनी गलती मान ली है। हाईकोर्ट में दायर हलफनामे में मोरबी म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने कहा है कि बिना फिटनेस सर्टिफिकेट के ब्रिज नहीं खोला जाना चाहिए था। बता दें, 30 अक्टूबर को हुए हादसे में 138 लोगों की मौत हो गई थी। इनमें 50 से ज्यादा बच्चे थे।
कोर्ट ने जबाव दाखिल करने का आदेश दिया था
बता दें, मोरबी ब्रिज गिरने के मामले में कोर्ट ने खुद एक्शन लेते हुए कार्रवाई शुरू कर दी है। कोर्ट ने मोरबी नगर निगम को 7 नवंबर को नोटिस जारी कर 14 नवंबर तक जवाब मांगा था, लेकिन निगम जवाब देने में विफल रहा। कोर्ट ने 15 नवंबर को एक और दिन का समय दिया था, लकिन निगम जवाब फाइल दाखिल करने में विफल रही। निगम ने 16 नवंबर को हुई सुनवाई में हलफनामा पेश किया।
कोर्ट ने सिविक बॉडी से पूछे थे 8 सवाल
बिना टेंडर बुलाए रेनोवेशन का ठेका कैसे दे दिया? पुल की फिटनेस को सर्टिफाई करने की जिम्मेदारी किसके पास थी? 2017 में कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने और अगले टेन्योर के लिए टेंडर जारी करने के लिए क्या कदम उठाए? 2008 के बाद MoU रिन्यू नहीं हुआ, तो किस आधार पर पुल को अजंता द्वारा संचालित करने की अनुमति दी जा रही थी? क्या हादसे के लिए जिम्मेदारों पर गुजरात नगरपालिका अधिनियम की धारा 65 का पालन हुआ था? गुजरात नगर पालिका ने अधिनियम की धारा 263 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग क्यों नहीं किया, जबकि प्राइमाफेसी गलती नगर पालिका की थी। पुल हादसे के बाद से अब तक क्या-क्या कदम उठाए गए हैं? क्या सरकार उनको अनुकंपा नौकरी दे सकती है जिनके परिवार का इकलौता कमाने वाला हादसे में मारा गया।
कॉन्ट्रैक्ट सिर्फ डेढ़ पन्ने का, बिना टेंडर ठेका कैसे दिया?
मंगलवार को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस अरविंद कुमार ने पूछा कि मोरबी सिविल बॉडी और प्राइवेट कॉन्ट्रेक्टर के बीच हुआ कॉन्ट्रैक्ट महज 1.5 पन्ने का है। पुल के रेनोवेशन के लिए कोई टेंडर नहीं दिया गया था। फिर बिना टेंडर ठेका क्यों दिया गया? कोर्ट ने स्टेट गर्वनमेंट से कॉन्ट्रैक्ट की पहले दिन से लेकर आज तक की सभी फाइलें सीलबंद लिफाफे में जमा करने का आदेश दिया है। साथ ही यह भी पूछा है कि गुजरात नगर पालिका ने मोरबी नगर समिति के CEO एसवी जाला के खिलाफ क्या कार्रवाई की है।
हाईकोर्ट ने खुद उठाया था मुद्दा
पिछले हफ्ते गुजरात हाईकोर्ट ने इस मामले को खुद उठाया था, जिसके बाद बेंच ने राज्य सरकार, गुजरात मुख्य सचिव, मोरबी नगर निगम, शहरी विकास विभाग (UDD), गुजरात गुजरात गृह मंत्रालय और राज्य मानवाधिकार आयोग को इस मामले में पक्षकार बनाने का निर्देश दिया था और उनसे रिपोर्ट्स मांगी थीं।