ऑक्सीजन भी दो तरह की होती है- औद्योगिक और मेडिकल। मेडिकल ऑक्सीजन 99.5 फीसदी प्योर होती है और इसे मानव शरीर में चिकित्सा के इस्तेमाल के लिए ही बनाया जाता है। मेडिकल ऑक्सीजन के सिलिंडर में कोई अन्य गैस जरा सी भी नहीं नहीं होती। दूसरी ओर औद्योगिक ऑक्सीजन का इस्तेमाल स्टील समेत विभिन्न उद्योगों में किया जाता है। ये ऑक्सीजन मानव प्रयोग के लिए उपयुक्त नहीं होती है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देश में 7127 मीट्रिक टन की उत्पादन क्षमता है। अब स्टील प्लांट्स में मौजूद सरप्लस ऑक्सीजन का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत ने अप्रैल 2020 से जनवरी 2021 के बीच 9 हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन का निर्यात किया था। कॉमर्स मिनिस्ट्री के अनुसार, वर्ष 2020 में सिर्फ 4500 मीट्रिक टन ऑक्सीजन निर्यात की गई। जनवरी 2020 में भारत ने सिर्फ 352 मीट्रिक टन ऑक्सीजन निर्यात की थी। दिसंबर 2020 में 2193 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का निर्यात हुआ जबकि 2019 के दिसंबर में मात्र 538 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का एक्सपोर्ट हुआ था। साल भर में यानी जनवरी 2021 आते आते हमारा निर्यात 734 फीसदी बढ़ चुका था। ये वही समय था जब हमें कोरोना की दूसरी लहर के लिए कमर कसनी थी।
वैसे सरकार का कहना है कि अप्रैल 2020 से फरवरी 2021 के बीच 9884 मीट्रिक टन औद्योगिक ऑक्सीजन का एक्सपोर्ट हुआ है। जबकि मेडिकल ऑक्सीजन सिर्फ 12 मीट्रिक टन बाहर भेजी गई है। सरकार का कहना है कि जब औद्योगिक ऑक्सीजन एक्सपोर्ट की जा रही थी उस दौरान मेडिकल ऑक्सीजन का उपभोग सितंबर के मुकाबले आधा हो गया था।
ये तर्क दिया गया है कि औद्योगिक ऑक्सीजन का ही एक्सपोर्ट हो रहा था और देश में रोजाना 7 हजार मीट्रिक टन की उत्पादन क्षमता है, लेकिन आज की भयानक स्थिति में ऑक्सीजन के सभी तरह के औद्योगिक इस्तेमाल पर जिस तरह प्रतिबंध लगा दिया गया है उससे साफ है कि ऑक्सीजन की कमी से निपटने के लिए औद्योगिक और मेडिकल ऑक्सीजन, दोनों को अलग अलग करके नहीं देखा जा सकता। स्पष्ट है कि कोरोना से निपटने के लिए दीर्घकालिक प्लानिंग नदारद रही है।