विश्वकर्मा (President Dr. Ram Vishwakarma) ने कहा, ‘मुझे लगता है कि मोलनुपिराविर (Molnupiravir) हमारे लिए पहले से ही उपलब्ध होगा। पांच कंपनियां दवा निर्माता के साथ वार्ता कर रही हैं। मुझे लगता है कि किसी भी दिन मंजूरी मिल जाएगी।’ उन्होंने कहा कि ब्रिटेन में अप्रूवल के लिए नियामक संस्थाओं के पास मोलनुपिराविर (Molnupiravir) का डेटा है। साथ ही भारत में सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमिटी भी इसको देख रही है। मेरा मानना है कि अब उन्हें तेजी से अप्रूवल मिलेगा। ऐसे में यह कहना उचित है कि अगले एक महीने में इस दवा के अप्रूवल पर फैसला हो जाएगा।
उन्होंने कहा- ‘मुझे लगता है कि जब भारत सरकार इन कंपनियों से थोक में दवा खरीदेगी। शुरू में इसका खर्च ‘2000 से 3000 या 4000 रुपये हर ट्रीटमेंट साइकल में खर्च हो सकता है। इसके बाद कीमतें 500 से 600 या 1,000 रुपये तक आ जाएंगी।’ उन्होंने कहा कि मुझे लगता है मोलमनुपिरवीर (Molnupiravir) जल्द ही उपलब्ध हो जाएगी। पांच ऐसी कंपनियां है जो दवा निर्माता के साथ मिलकर काम कर रही हैं. मुझे लगता है कि ऐसे में कभी भी हमें इसे इस्तेमाल की मंजूरी मिल सकती है। वहीं, फािजर ने अपने एक बयान में कहा कि उनकी दवा पैक्सलोविड कमजोर मरीजों में अस्पताल में भर्ती होने या मौत के जोखिम को 89 प्रतिशत तक कम करती है।
फाइजर भी बना रही दवा
बता दें फाइजर (pfizer) भी ऐसी ही एक दवा पर काम कर रही है। फाइजर (pfizer) ने PF-07321332 नाम की इस दवा को बनाने की शुरुआत मार्च 2020 में कर दी थी, इसका रितोनाविर (HIV medicine) के संयोजन में परीक्षण चल रहा है। ये दवा प्रोटीज इन्हीबीटर कहलाती है, प्रयोगशाला में हुए परीक्षण के मुताबिक ये दवा वायरस की रेप्लीकेशन मशीनरी यानी उसके दोगुना होने वाले तंत्र को जाम कर देती है।
अगर ये दवा असल जिंदगी में भी ऐसा ही काम करती है तो इससे शुरुआती चरण में ही संक्रमण (Coronavirus) को रोकना मुमकिन हो जाएगा। अब तक कोविड गंभीर बीमारी का रूप ले लेता है। मर्क ने पहले ही पांच कंपनियों से कॉन्ट्रैक्ट किया है और जिस तरह से मर्क ने कई कंपनियों को यह लाइसेंस दिया है, फाइजर भी ऐसा करेगा क्योंकि फाइजर (pfizer) को वैश्विक उपयोग के लिए आवश्यक दवाओं के निर्माण के लिए भारतीय क्षमता का उपयोग करना होगा।