दूसरे सर्वाधिक प्रभावित राज्य केरल में अब तक 33,49,365 लोगों को संक्रमित पाया गया है और 16,585 मौतें हुई हैं। इसी तरह 29,01,247 मामलों और 36,491 मौतों के साथ कर्नाटक और 25,55,664 मामलों और 34,023 मौतों के साथ तमिलनाडु अगले दो सबसे अधिक प्रभावित राज्य हैं।
देश में जितने मामले मिल रहे हैं उनमें करीब आधे सिर्फ केरल (Kerala) से हैं। केरल में बीते एक हफ्ते से रोजाना 15 से 20 हजार केस मिल रहे हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये पीक अवस्था पहुंचने का भी संकेत हो सकता है। राज्य में महामारी की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार ने एक छह सदस्यीय टीम केरल भेज दी है। इस टीम में राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र के छह सदस्य शामिल हैं। ये टीम केरल के हालात का जायजा लेगी और राज्य सरकार के साथ मिलकर मामलों को काबू में करने की रणनीति बनाएगी।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, केरल के कोट्टायम जिले (Kottayam) में 28 जून के बाद से संक्रमण के मामलों में 64 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी तरह इस अवधि में मलप्पुरम (Malappuram) में संक्रमण के प्रतिदिन सामने आने वाले नए मामलों में 59 प्रतिशत, एर्नाकुलम (Ernakulam) में 46.5 प्रतिशत और त्रिशूर (Thrissur) में 45.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। चौंकाने वाली बात यह है कि सरकार की ओर से इन जिलों में सख्ती बरतने के बाद भी स्थिति नियंत्रण में नहीं है।
आईसीएमआर के चौथे सीरो सर्वे (ICMR Sero Survey) में पता चला है कि केरल में अभी तक छह साल से ऊपर की केवल 44 प्रतिशत आबादी ही कोरोना संक्रमण की चपेट में आई है। राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत 67 प्रतिशत है। इसका मतलब है कि अभी केरल में आधी से अधिक आबादी के संक्रमित होने का खतरा है। इसे राज्य में कोरोना के दैनिक मामलों की बड़ी संख्या के पीछे का एक कारण माना जा सकता है।
केरल में भले ही रोजाना बड़ी संख्या में दैनिक मामले दर्ज हो रहे हैं लेकिन यहां वायरस का प्रसार दूसरे राज्यों से कम है। इससे पता चलता है कि संक्रमितों की पहचान करने में केरल का रिकॉर्ड बेहतर है। इससे पहले के सीरो सर्वे में पता चला था कि राष्ट्रीय स्तर पर 26 में से एक व्यक्ति कोरोना की चपेट में आया है, जबकि केरल में यह आंकड़ा प्रति पांच व्यक्तियों में एक था।
एक्सपर्ट्स का दावा है कि केरल में ऐसे लोगों की संख्या कम है, जो कोरोना की पड़ताल से बच जाते हों। और दूसरा कारण लोगों का व्यवहार है, क्योंकि जब भी किसी व्यक्ति में कोई लक्षण महसूस होता है तो ज्यादातर लोग खुद ही टेस्ट करवाने चले जाते हैं। लोग बीमारी छिपाते नहीं है।