आपको बता दें कि सीरम इंस्टिट्यूट कोई अपनी डेवलप की हुई वैक्सीन बेच नहीं रहा है बल्कि वह सिर्फ एस्ट्राजेनेका से लाइसेंस और अग्रीमेंट के तहत कोविशील्ड बना रहा है। लेकिन फिर भी भारत में बनाई जा रही वैक्सीन को ब्रिटेन ने दरकिनार कर दिया और ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को मान्यता दे दी है। वहीं, ब्रिटेन में नेशनल इंडियन स्टूडेंट्स एंड एल्यूमनाई यूनियन (एआईएसएयू) की अध्यक्ष सनम अरोड़ा ने ब्रिटेन के इस कदम को भेदभाव पूर्ण बताया है।
सनम अरोड़ा ने कहा कि भारतीय छात्रों से ब्रिटेन सालाना 2.88 करोड़ पाउंड कमाता है। उसके बावजूद वहां के छात्रों व लोगों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया जा रहा है। भारतीय छात्र इस बात से परेशान हैं। उन्हें यह लगता है कि यह एक भेदभाव पूर्ण कदम है।
क्या है ब्रिटेन का नया आदेश?
ब्रिटेन के ताजा आदेश में कहा गया है कि भारत के साथ साथ थाईलैंड और अफ्रीका अन्य कई देशों से आने वाले यात्रियों, जो पूरी तरह से वैक्सीनेटेड होंगे, को भी 10 दिनों तक क्वारनटीन रहना होगा। साथ ही इन यात्रियों को कई बार RT-PCR टेस्ट से भी गुजरना होगा। ये नियम पहले से ही लागू हैं, लेकिन भारत को राहत मिलने की उम्मीद थी। हालांकि यूके ने भारत की वैक्सीन को मान्यता न देकर देश को जोरदार झटका दिया है।
किन वैक्सीनों को दी गई मान्यता?
ब्रिटेन की ओर से मान्यता प्राप्त टीकों में ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका, फाइजर बायोनटेक, मॉडर्ना या जैनसेन ही शामिल हैं। लेकिन भारत में कोरोना के खिलाफ वैक्सीनेशन के लिए ज्यादातर कोविशील्ड वैक्सीन का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा बनाई जा रही वैक्सीन एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का ही भारतीय वर्जन है। लेकिन इसे भारत में बनाए जाने की वजह से इसे ब्रिटेन ने मान्यता नहीं दी है। चूंकि इस लिस्ट में भारत या फिर कोविशील्ड का नाम शामिल नहीं है, ऐसे में अंबर लिस्ट में होने के बावजूद यात्रियों को कठोर शर्तें पूरी करनी होंगी।