सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मौत की सजा से जुड़े मामले पर सुनवाई करते हुए इसके लिए संविधान पीठ बनाने का आदेश दिया। CJI यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने कहा कि ऐसे सभी मामले, जिनमें मौत की सजा विकल्प है उन्हें कम करने वाली परिस्थितियों को रिकॉर्ड में रखना जरूरी है।
हालांकि, मौत की सजा को कम करने वाले हालात को आरोप साबित होने के बाद ही दोबारा दर्ज किया जा सकता है।
संविधान पीठ बनाने का आदेश देने से पहले बेंच ने कहा कि एक आरोपी को मौत की सजा देने से पहले सुनवाई के संबंध में कई विरोधी फैसले थे। बच्चन सिंह मामले में कोर्ट ने भारत के 48वें विधि आयोग की सिफारिशों के अनुसार मौत की सजा देने से पहले आरोपियों की अलग सुनवाई अनिवार्य कर दी थी।
CJI यूयू ललित ने 17 अगस्त को इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। उन्होंने कहा था- मृत्युदंड की सजा और दोषी के मरने के बाद फैसले को न बदल सकते हैं न हटा सकते हैं। यानी आरोपी को अपराध की गंभीरता को कम साबित करने का मौका देना जरूरी है, ताकि कोर्ट को बताया जा सके कि मृत्युदंड की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने सुओ-मोटो केस की सुनवाई की।
कोर्ट यह सुनिश्चित करना चाहता है कि मृत्युदंड की संभावना वाले मामलों में ट्रायल के दौरान सुबूतों को शामिल किया जाए, क्योंकि इस मामले में तुरंत कार्रवाई की जरूरत है।
मौत की सजा कम करने और दोषी का पक्ष सुनकर फैसला लेने का यह मामला इरफान नाम के शख्स की याचिका के बाद सामने आया। इसमें निचली अदालत ने उसे मौत की सजा सुनाई थी और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इसे जारी रखा था।