सीजेआई एनवी रमना (CJI NV Ramana) को लिखे अपने पत्र में घनवत ने कहा कि संसद के आगामी शीतकालीन सत्र ( ) में कृषि कानूनों को निरस्त (withdrawal of agriculture laws) करने के सरकार के फैसले के बाद समिति की रिपोर्ट अब उन कानूनों के संबंध में प्रासंगिक नहीं है, लेकिन रिपोर्ट में किसानों के मुद्दों पर ऐसे सुझाव हैं जो बड़े जनहित के हैं।
किसानों की गलतफहमी हो सकती हैं कम
साथ ही कहा कि ये रिपोर्ट एक शैक्षिक भूमिका भी निभा सकती है और कई किसानों की गलतफहमी को कम कर सकती है, जो मेरी राय में कुछ नेताओं की तरफ से गुमराह किए गए हैं, जो इस बात की सराहना नहीं करते हैं कि कैसे एक न्यूनतम विनियमित मुक्त बाजार राष्ट्रीय संसाधनों को उनके सबसे अधिक उत्पादक उपयोग के लिए आवंटित कर सकता है। शेतकारी संगठन के वरिष्ठ नेता और स्वतंत्र भारत पार्टी के अध्यक्ष घनवत (Swatantra Bharat Party President Ghanvat) ने सुधारों की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि विशिष्ट कानून अब मौजूद नहीं हो सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को लिखे पत्र में अनिल घणवत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन को देखते हुए 12 जनवरी को जो चार सदस्यीय कमेटी बनाई थी उसने अपनी रिपोर्ट 19 मार्च को सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी थी, लेकिन उन्हें उन्हें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस रिपोर्ट पर कोई ध्यान ही नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि कमेटी ने विभिन्न किसान संगठनों, अर्थशास्त्रियों और कृषि विशेषज्ञों के साथ बातचीत करके दो महीने में यह रिपोर्ट तैयार की है। सुप्रीम कोर्ट ने पांच महीनों में न तो इसे सार्वजनिक किया है और न ही इसे केंद्र सरकार को भेजा है।
विनियमन ही किसानों और पर्यावरण के लिए नुकसान का रहा कारण
सीजेआई (CJI NV Ramana) को लिखे अपने पत्र में घनवत ने कहा कि मैं अदालत के ध्यान में लाना चाहता हूं कि कई दशकों से भारत के किसान अपने आप में उद्यमी के रूप में, ऐसे विनियमन से पीड़ित हैं जो उनके उत्पादन और विपणन प्रयासों को रोकता है। इस विनियमन का अधिकांश भाग संविधान की अनुसूची 9 में निहित है, जो न्यायिक जांच से दूर। विनियमन का उद्देश्य एक उद्यमी की कार्रवाई से होने वाले किसी भी नुकसान को कम करना है, लेकिन किसानों के मामले में विनियमन ही किसानों और पर्यावरण के लिए नुकसान का कारण रहा है।
इन कानूनों को हमारे किसान आंदोलन ने सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया था, लेकिन किसानों की ओर से पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया था, क्योंकि भारत सरकार की नीति प्रक्रिया सलाहकार नहीं है। मैं माननीय सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) से अनुरोध करता हूं कि वो सरकार को एक अनुकरणीय, मजबूत नीति प्रक्रिया विकसित करने और लागू करने का निर्देश देने पर विचार करे, जिसका विकसित देशों में पालन किया जाता है।