पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के लिए जारी मतगणना के शुरुआती रुझानों में तृणमूल कांग्रेस एक बार फिर राज्य की सत्ता में वापसी करती दिख रही है तो इसके पीछे ममता बनर्जी का चमत्कारिक नेतृत्व तो बड़ा कारण है ही साथ ही यह भी साबित हो गया है कि राज्य के अल्पसंख्यक मतदाता एकजुटता के साथ तृणमूल कांग्रेस के साथ खड़े रहे। चुनावों से ऐन पहले धार्मिक आधार पर आईएसएफ जैसी राजनीतिक पार्टी का गठन हुआ तो माना गया कि अल्पसंख्यक मतदाता बंट सकते हैं लेकिन भाजपा के आक्रामक चुनाव प्रचार को देखते हुए अल्पसंख्यकों को शायद यही लगा कि यह समय ममता बनर्जी के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने का है वरना भाजपा सत्ता में आ जायेगी। भाजपा नेताओं ने अपने चुनावी भाषणों में जिस तरह ममता बनर्जी पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया उससे भी अल्पसंख्यक मतदाताओं को यही लगा कि उनके हित में कोई सर्वाधिक सोचने वाला नेता है तो वह ममता बनर्जी ही हैं।
पूरे चुनावों के दौरान जिस तरह सभी मीडिया रिपोर्टों में यह दिखाया गया कि अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में तृणमूल कांग्रेस ही हावी नजर आ रही है, चुनाव परिणामों ने उसकी पुष्टि कर दी है। ममता बनर्जी जानती थीं कि अल्पसंख्यक तो उनके साथ खड़े हैं इसीलिए उन्होंने चुनावी सभाओं में अपने हिंदू होने की बात पर ज्यादा जोर देते हुए चंडी पाठ करना भी शुरू कर दिया। भाजपा जहां एक ओर जय श्री राम का नारा लगा कर हिंदुत्व के मुद्दे को गर्मा रही थी वहीं ममता बनर्जी ने चंडी पाठ करके भाजपा के हिंदुत्व मुद्दे की धार को कमजोर कर दिया। यही नहीं ममता बनर्जी जब भी कहीं जातीं तो भाजपा कार्यकर्ता जय श्री राम का नारा लगा कर उनका स्वागत करते थे लेकिन ममता बनर्जी इस पर चिढ़ जाती थीं और इस बात को भी भाजपा ने चुनाव में बड़ा मुद्दा बना लिया था। बहरहाल, चुनाव परिणाम बाद भाजपा को संभवतः बंगाल संबंधी अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़े।