Faridabad/Atulya Loktantra: अर्नब गोस्वामी जैसे पत्रकारों पर भी पत्रकारों को सोचना चाहिए, क्या इन जैसे पत्रकारों ने कभी पत्रकारों के लिए आवाज उठाई ? पत्रकार जगत पर किसी भी तरह के हमले को हम ठीक नहीं कहते लेकिन सवाल यह है क्या अर्नब की पत्रकारिता ठीक है, क्या वह सही मायने में पत्रकार है ? इस क्रीमी लेयर के पत्रकार ने क्या छोटे, या माध्यम स्तर के पत्रकार के लिए कोई संघर्ष किया ? यह सवाल है इंटेलिजेंस मीडिया एसोसिएशन के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य पत्रकार दीपक शर्मा “शक्ति” का।
पूछता है पत्रकारिता जगत
लड़ाई आम पत्रकारों के हित की है जिस पर आज तक किसी भी सरकार ने ठीक तरह से नहीं सोचा, लॉकडाउन में समाचारपत्र और टेलीविज़न मीडिया पर अपना आधिपत्य जमाए बैठे पूंजीपति घरानों ने हजारों पत्रकारों और मीडिया स्टाफ को नौकरियों से बाहर कर दिया। इस पर कितनी मीडिया एसोसिएशन और अर्नब जैसे स्वयंभू पत्रकारों ने ठीक से आवाज उठाई ?
हम पत्रकार हैं समझ नहीं आता हम लोग भी राजनीति के शिकार क्यों हो जाते हैं ? इस तरह के मुद्दों में उलझकर हम अपने अधिकारों को क्यों भूल जाते हैं ? पत्रकारों के हित को ध्यान रखकर काम करने वाले उन पत्रकारों की संस्थाओं के प्रतिनिधियों से अपील है कि सिर्फ और सिर्फ पत्रकार के लिए सोचिए। राजनीतिक लोगो के लिए सोचने का काम राजनीतिक दलों का है।
यदि पत्रकार पर पत्रकारिता के दौरान हमला हुआ है या पत्रकार को मार दिया गया , या पत्रकार को या उसके परिवार पर आर्थिक संकट या निजी जिंदगी में संकट आ गया हो तो पत्रकारों या पत्रकार संगठन का फ़र्ज़ है कि साथ खड़े होकर उसकी लड़ाई लड़ें। यदि कोई भी पत्रकार कानून के दायरे से बाहर निकल कर कोई कृत्य करें तो उस समय हम सब को न्याय, कानून को सर्वोपरि मानते हुए देश की न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े नहीं करने चाहिए।
क्योंकि कानून से उपर देश का कोई नागरिक नहीं है। दीपक शर्मा ने जारी अपने प्रेस नोट कहा कि उनकी बात को कोई पत्रकार या पत्रकार संगठन अन्यथा न लें बल्कि गंभीरता से विचार करें। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें अर्नब गोस्वामी एपिसोड पर कुछ नहीं कहना, कानून अपना काम स्वयं कर रहा है।