Faridabad/Atulya Loktantra : लॉकडाउन के कारण आर्थिक तंगी से जूझ रहे कई अभिभावक निजी स्कूलों के व्यवहार, मनमाने शुल्क व विद्यार्थियों के स्कूल ट्रांसफर सर्टिफिकेट (टीसी) के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। ऐसे कई बच्चों के अभिभावकों की शिकायतें शिक्षा विभाग में दर्ज हैं, जिन पर नाम के लिए कार्रवाई की जा रही है या यूं कहे प्रशासनिक अधिकारी फोन की घंटियां बजाने को अपनी जिम्मेदारी तक सीमित मान रहे हैं, चाहे समस्या का समाधान हो या न हो। हैरत की बात तो यह है कि कई निजी स्कूल संचालकों के फोन नंबर तक विभाग के पास नहीं है।
इसका हर्जाना अभिभावक शिक्षा विभाग व स्कूल प्रबंधन के चक्कर काट कर स्वयं भुगत रहे हैं। स्कूलों की मनमानी से परेशान कुछ अभिभावकों के शिकायत पत्र कहते हैं कि वह लाचार हैं। उनकी मदद की जाए। इनमें से तीन पत्रों में लिखी परेशानी पढ़कर तय किया जा सकता है कि आखिर समस्या क्या हैं और समाधान क्या हो रहा है।
पहला मामला
बसेलवा कॉलोनी निवासी आरएल गुलाटी ने पांच अगस्त को शिक्षा विभाग को शिकायत दी कि उनका बेटा आदित्य हर्ष मॉडल स्कूल में पढ़ता था। मार्च 2020 तक की फीस का भुगतान उन्होंने समय से किया। इसके बाद नौकरी छूट गई। नए सत्र में दाखिले से पूर्व ही उन्होंने बेटे की टीसी के लिए आवेदन कर दिया। हालांकि, लॉकडाउन के कारण अचानक स्कूल बंद हो गए। जुलाई में स्कूल कार्यालय खुला देख उन्होंने बेटे की टीसी मांगी तो स्कूल प्रबंधन ने मार्च से जुलाई तक चार माह की फीस मांग ली। उन्होंने बिना किसी कक्षा के बिना किसी दाखिले के फीस भुगतान से इंकार किया तो संचालकों ने टीसी देने से मना कर दिया। गुलाटी ने बताया कि वह आर्थिक परेशानी के कारण स्कूल की किसी भी मांग को पूरा करने में असमर्थ है। उनकी शिकायत पर कोई समाधान नहीं हुआ। न तो स्कूल प्रबंधन उनकी सुन रहा है न ही शिक्षा विभाग।
दूसरा मामला:
डबुआ में प्रिंस स्कूल है। स्कूल में दसवीं तक पढ़ाई कर चुके आर्यन झा के पिता बृजेश झा ने शिक्षा विभाग से 27 अगस्त को शिकायत की। शिकायत में स्कूल से टीसी लेने में आ रही परेशानी के बारे में बताते हुए लिखा कि बेटे का केंद्रीय विद्यालय में दाखिला सुनिश्चित करने के लिए टीसी की जरूरत है। टीसी की एवज में स्कूल प्रबंधन पांच महीने की फीस का भुगतान चाहता है, जबकि बच्चे ने न तो कभी ऑनलाइन क्लास ली न ही उन्होंने मौजूदा सत्र में निजी स्कूल में दाखिला सुनिश्चित कराया। बावजूद इसके उन्होंने कुछ फीस का भुगतान किया। अब उनकी नौकरी छूट गई। उन्होंने स्कूल को पत्र व मौखिक रूप से अपनी आर्थिक स्थिति अनुसार फीस भुगतान करने में असमर्थता जताई, इसी कारण बेटे को निजी स्कूल से सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाने का कारण भी स्पष्ट किया। बावजूद इसके स्कूल संचालक टीसी देने से इनकार कर रहे हैं। वहीं, केंद्रीय विद्यालय में भी टीसी देने की समय सीमा 31 अगस्त तक है। हताश अभिभावक बृजेश ने बताया कि मामले में शिक्षा विभाग भी स्कूल से फोन पर संपर्क न होने की बात कह कर असमर्थता जता रहा है। अधिकारी क्या फोन संपर्क तक सीमित हैं? मामले में ठोस कदम का कोई प्रावधान नहीं है।
तीसरा मामला
इसी तरह प्रिंस स्कूल से संबंधित एक अन्य मामला शिव कुमार नाम के विद्यार्थी का है। शिव ने दसवीं कक्षा 90 फीसदी से अधिक अंक से पास की। स्कूल प्रबंधन ने बिना दाखिले व मासिक फीस के बेटे को पढ़ाने की बात कही। इसी दौरान शिव का नाम केंद्रीय विद्यालय में दाखिले के लिए चयनित हो गया। अब स्कूल से टीसी के नाम पर सात हजार रुपये मांगे जा रहे हैं। स्कूल की दोहरी प्रतिक्रिया देख न सिर्फ अभिभावकों ने बच्चे का नाम स्कूल से कटवाया, बल्कि मामले की शिकायत शिक्षा विभाग को दी है, जिसमें टीसी के नाम पर सात हजार रुपये वसूलने की शिकायत है। शिव की मां ज्ञानबती बीते कई दिनों से शिक्षा विभाग के चक्कर लगा रही हैं, विभाग स्कूल से संपर्क न होने की बात कहकर टाल रहा है।
इसी तरह बढ़ी हुई स्कूल फीस, ट्रांसपोर्ट चार्ज (स्कूल बस सेवा शुल्क) जैसी मदों में स्कूल अतिरिक्त मनचाहा शुल्क मांग रहे हैं। मामले की कई अलग-अलग शिकायतें शिक्षा विभाग के कार्यालय में हैं। इसमें से मुश्किल से कुछ शिकायतों की निवारण ही अधिकारी स्तर से हो पाया। शेष लंबित ही हैं।
मामलों पर तुरंत संज्ञान लिया जा रहा है। शिक्षा विभाग स्कूलों को फोन कर नरमी बरतने के लिए कह रहे हैं। टीसी के लिए कोई स्कूल शुल्क नहीं ले सकता, इसका पत्र भी सभी स्कूलों को भेजा जा चुका है। हम अपने स्तर से प्रयास कर रहे हैं।
– सतेंद्र कौर, जिला शिक्षा अधिकारी, फरीदाबाद