New Delhi/Atulya Loktantra : बुधवार को केंद्र सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अपनी मंजूरी दे दी. इसी के साथ शिक्षा नीति को लेकर अलग-अलग किस्म की बहस छिड़ी हुई है. खास तौर पर जाने-माने शिक्षाविदों के बीच ये चर्चा आम है कि आने वाले दिनों में शिक्षा नीति लागू होने के बाद कौन से बदलाव देखने को मिलेंगे.
जाहिर सी बात है कि सरकार के इस फैसले को लेकर अब शिक्षा जगत के जानकार भी बंटे हुए हैं. इसी को लेकर आज तक ने दिल्ली में शिक्षा जगत के अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े हुए विशेषज्ञों की राय जाननी चाही. राष्ट्रीय शिक्षा नीति सिर्फ स्कूली शिक्षा को नहीं बल्कि आने वाले समय में उच्च शिक्षा यानी हायर एजुकेशन पर भी अपना असर डालेगी. आज तक ने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर एम जगदीश कुमार के साथ ही साथ दिल्ली के स्प्रिंगडेल्स स्कूल की प्रिंसिपल अमिता वट्टल और दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष आदित्य नारायण मिश्रा से बातचीत की.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के उपकुलपति जगदीश कुमार ने साफ तौर पर कहा कि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति ऐतिहासिक है वह इस लिहाज से कि जितना राय मशविरा इसे लाने से पहले किया गया है वह पहले कभी नहीं हुआ. लाखों की तादाद में ग्राम पंचायतों, हजारों की तादाद में ब्लॉक स्तर और सैकड़ों की तादाद में जिला स्तर पर इस पूरे विषय पर चर्चा की गई और तब कहीं जाकर इसे अंतिम रूप दिया गया. अलग-अलग राज्य सरकारों से भी इस पर राय मांगी गई थी और उन्होंने भी अपने राज्य के अनुसार इस नीति में सुझाव दिए. कुमार के मुताबिक इससे ज्यादा समावेशी राष्ट्रीय शिक्षा नीति हो ही नहीं सकती थी.
इस पूरी शिक्षा नीति में रीजनल लैंग्वेज को तवज्जो देने पर भी ज्यादा जोर दिया गया है. उस पर हमने जब सवाल पूछा तो अमिता वट्टल ने जवाब दिया कि ऐसा करने से खास तौर पर राज्य स्तर के स्कूल बेहतर कर पाएंगे क्योंकि उन्हें शिक्षा अपनी मातृभाषा में मिलेगी. लेकिन साथ ही बड़े शहरों जैसे मेट्रो शहर यानी दिल्ली और अन्य शहरों के लिए सीबीएसई को नई गाइडलाइन जारी करनी पड़ेगी क्योंकि यहां हर राज्य के छात्र आते हैं और ऐसे में उनके लिए रीजनल लैंग्वेज का कोई मायने नहीं रहता.
दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ यानी डूटा के पूर्व अध्यक्ष आदित्य नारायण मिश्रा इस पूरी नई शिक्षा नीति से कहीं भी सहमत नहीं दिखाई पड़ते हैं. उनका साफ तौर पर कहना है कि नई क्रेडिट पॉलिसी जो कि यूनिवर्सिटी और कॉलेज को अलग-अलग ग्रेड में पाटेगी वह प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा देगी.
उनके मुताबिक बेहतर यूनिवर्सिटी को आत्मनिर्भर होने के लिए कहा जाएगा यानी ऐसी तकरीबन 100 यूनिवर्सिटी में छात्रों को खुद अपना खर्च वहन करना पड़ेगा. जो बिल्कुल निचले स्तर की यूनिवर्सिटी है उन्हें बंद कर दिया जाएगा. लेकिन ऐसा करना सही नहीं है क्योंकि आप राष्ट्रीय यूनिवर्सिटी की प्रतियोगिता किसी छोटे शहर के विश्वविद्यालयों से नहीं कर सकते हैं.
आदित्य नारायण मिश्रा का यह भी कहना है कि यह पॉलिसी ऑनलाइन एजुकेशन को बढ़ावा देगी और आज के डिजिटल गैप में ऐसा करना सही नहीं है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जो छात्र ऑनलाइन के जरिए निकल कर के आते हैं वह क्लासरूम शिक्षा का कहीं से भी मुकाबला नहीं कर सकते और ऐसे में उन्हें दोयम दर्जे का ही समझा जाता है.
सरकार ने यह भी कहा है कि नई शिक्षा पॉलिसी के तहत वह जीडीपी का 6 फीसदी शिक्षा पर खर्च करेगी लेकिन इस पर मिश्रा का कहना है कि यूनिवर्सिटी को ग्रांट मिलना चाहिए जो कि सरकारी हो जीडीपी में प्राइवेट हिस्सेदारी भी आती है और ऐसा करना निजीकरण को और बल देगा.